संविदा का पालन कौन कर सकता है?// By whom a contract may be performed.

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 प्रश्न - संविदा का पालन कौन कर सकता है? By whom a contract may be performed.



OR


वे कौन से व्यक्ति हैं जिनके द्वारा एक संविदा के अन्तर्गत की गई प्रतिज्ञा का पालन किया जाना चाहिए?

Who are the persons whom the promise under a contract should be


performed? उत्तर—संविदा अधिनियम की धारा 40 एवं 41 में उन व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है जिनके द्वारा संविदा के अन्तर्गत की गई प्रतिज्ञा का पालन किया जाना चाहिए।


वचनदाता अथवा उसके प्रतिनिधि द्वारा पालन - धारा 40 में यह प्रावधान किया गया है कि- किसी संविदा का पालन साधारणतया स्वयं वचनदाता को या उसके प्रतिनिधि अथवा अभिकर्ता को करना चाहिए। जहाँ संविदा के पक्षकारों का यह आशय रहा हो कि किसी वचन का पालन स्वयं वचनदाता द्वारा किया जाना चाहिए तो ऐसे वचन का पालन वच दाता को ही करना होगा।


उदाहरणार्थ - क, ख को उसके लिए एक रंगचित्र बनाने का वचन देता है। क को इस वचन का पालन स्वयं करना होगा।


अन्य दशाओं में वचन का पालन वचनदाता या उसके प्रतिनिधि द्वारा नियुक्त किसी सक्षम व्यक्ति द्वारा किया जा सकेगा, जैसे-किसी स्थावर सम्पत्ति के क्रय की संविदा का विनिर्दिष्ट अनुपालन पक्षकारों के वैध प्रतिनिधियों से करवाया जा सकता है। [ए० आई० आर० 1929 रंगून 274]


लेकिन जहाँ किसी संविदा का पालन किसी पक्षकार की व्यक्तिगत योग्यता एवं कुशलता पर आधारित हो, वहाँ उसका पालन उसी पक्षकार को करना होगा। इसके लिए न तो किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त किया जा सकता है और न बाध्य ही चित्र बनाना, पुस्तक लिखना, नाचना एवं नाना-बजाना तथा सेवा आदि कतिपय ऐसी ही प्रकृति की संविदाएँ हैं जिनका पालन स्वयं वचनदाता को करना होता है।


व्यक्तिगत सेवा से सम्बन्धित करारों में यह परोक्ष शर्त रहती है कि दोनों पक्षकारों में से किसी की भी मृत्यु हो जाने पर वह करार भंग अथवा विघटित हो जायेगा। [ए० आई० आर० 1957 आन्ध्र प्रदेश 643]। व्यक्तिगत सेवा सम्बन्धी संविदाओं में उसके पालन के प्रश्न का निर्धारण पक्षकारों के वास्तविक आशय पर निर्भर करता है। [ए० आई० आर० 1954 उड़ीसा 241]


आधार - सूत्र - जिस आधार सूत्र पर सेवासम्बन्धी उपर्युक्त नियम का प्रतिपादन हुआ है, वह है-" वैयक्तिक अभियोग व्यक्ति की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है।"


अन्य व्यक्ति से पालन स्वीकार करने का प्रभाव. - वचनग्रहीता को यह विकल्प प्राप्त रहता है कि वह संविदा का पालन चाहे तो स्वयं पक्षकार से करवाये या चाहे तो किसी अन्य व्यक्ति से। लेकिन जब वह एक बार किसी अन्य व्यक्ति से पालन स्वीकार कर लेता है तो आगे चलकर वह वचनदाता के विरुद्ध उसे प्रवर्तित नहीं करा सकता। [ धारा 41]


अनिवार्य शर्तें. - इस नियम की प्रयोज्यता के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह यह


है कि- (1) संविदा का वास्तविक पालन कर दिया गया हो; एवं


(2) सम्पूर्ण रूप से पालन कर दिया गया हो। [ ए० आई० आर० 1966 मैसूर 84]


लाला कूपरचन्द गोधा बनाम हिमायत अली खाँ, ए० आई० आर० 1963 एस० सी० 250 के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि जहाँ वादी ने किसी अन्य व्यक्ति से अपने दावे की सम्पूर्ण तुष्टि में कोई संदाय स्वीकार कर लिया हो, वहाँ वह शेष धन के लिए प्रतिवादी के विरुद्ध वाद नहीं ला सकता।

प्रभाव. - किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा पालन तथा वचनग्रहीता द्वारा उसकी स्वीकृति का प्रभाव वचनदाता का उन्मोचन होता है, यद्यपि वचनदाता तीसरे व्यक्ति के कृत्य को न तो प्राधिकृत करता है और न अनुसमर्थन ही करता है।


एक मामले में भारत संघ, रेलवे प्रशासन तथा कई बीमा कम्पनी के विरुद्ध क्षतिपूर्ति के लिए वाद संस्थित किया गया। बीमा कम्पनियों ने इस शर्त के साथ सम्पूर्ण क्षतिपूर्ति का संदाय कर दिया कि वादी भारत संघ तथा रेलवे प्रशासन के विरुद्ध अभियोजन चलायेगा और उनसे जो कुछ राशि प्राप्त की जायेगी उसका संदाय बीमा कम्पनी को किया जायेगा। यह अभिनिर्धारित किया गया कि यह एक सशर्त संदाय होने से इस पर धारा 41 के प्रावधान लागू नहीं होंगे। [ (1988) मैसूर एल० जे० 240]

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