क्षतिपूर्ति की संविदा//Contract Of Indemnity

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Hello/ नमस्कार दोस्तो PW diaries में आपका एक बार फिर स्वागत है और आज हम बात करते हैं, क्षतिपूर्ति की संविदा तथा उसकी परिभाषा , भारतीय तथा अंग्रेजी विधि में अंतर और क्षतिपूर्तिधारी अधिकारों  और अंत में एक प्रश्न हल करने की कोसिस करेंगे ।


    क्षतिपूर्ति की संविदा ( Contract Of Indemnity )

    क्षतिपूर्ति की संविदा एक विशिष्ट संविदा है इसके अंतर्गत एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार की क्षतिपूर्ति की जाती है| शब्दकोश के अनुसार क्षतिपूर्ति का अर्थ हानि के विरुद्ध सुरक्षा है, विशेषकर संदाय के लिए दिए गए किसी वचन या धन, माल की हानि के लिए।

    क्षतिपूर्ति की परिभाषा

    क्षतिपूर्ति की संविदा को भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 124 में परिभाषित किया गया है, जो इस प्रकार है-

    "संविदा जिसके द्वारा एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को स्वयं वचन दाता के आचरण से या किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से उस दूसरे पक्षकार को हुई हानि से बचाने का वचन देता है, क्षतिपूर्ति की संविदा कहलाती है।"

    धारा 124 में दृष्टांत दिया है जो क्षतिपूर्ति की संविदा को और स्पष्ट करता है, क ऐसी कार्यवाहियों के परिणाम के लिए जो ग 200 रुपए की अमुक राशि के संबंध में ख के विरुद्ध चलाएं, ख की क्षतिपूर्ति करने की संविदा करता है । यह क्षतिपूर्ति की संविदा है।

    परिभाषा से स्पष्ट है कि जो व्यक्ति क्षतिपूर्ति करने का वचन देता है वह क्षतिपूर्ति करता ( Indemnitfior) कहलाता है और जिसकी क्षतिपूर्ति की जाती है उसे क्षतिपूर्तिधारी (Indemnity-Holder) कहते हैं।

    दृष्टांत में क क्षतिपूर्ति करता है तथा ख क्षतिपूर्तिधारी है और ग अन्य व्यक्ति है जिसके आचरण से ख को क्षति होने की संभावना है जिसकी क्षतिपूर्ति करने की संविदा क, ख से करता है।

    इस प्रकार से यहां क्षति दो तरह से हो सकती है पहला स्वयं वचन दाता के आचरण से दूसरा किसी अन्य व्यक्ति के आचरण से इसमें दोनों तरह से हानि से सुरक्षा प्रदान की गई है। 


    भारतीय विधि

    क्षतिपूर्ति की संविदा में क्षति केवल मानवीय आचरण से उत्पन्न होने चाहिए किसी दैवी आपदा या आग से या किसी दुर्घटना से क्षति नहीं होनी चाहिए। जहां क्षति पक्षकार की किसी मानव आचरण के द्वारा नहीं होती है वहां क्षतिपूर्ति की संविदा में क्षतिपूर्ति नहीं की जाती है। यह सिद्धांत भारतीय विधि में मान्य है। भारतीय विधि में बीमा की संविदा एक क्षतिपूर्ति की संविदा नहीं होती है ऐसी संविदा संविदा अधिनियम की धारा 130 द्वारा समाश्रित संविदा होती हैं।


    अंग्रेजी विधि 

    क्षतिपूर्ति के संबंध में अंग्रेजी विधि भारतीय विधि से अधिक व्यापक है इसमें उन प्रतिज्ञाओ का भी समावेश होता है जो किन्ही घटनाओं अथवा दुर्घटनाओं से हुई हानि से बचाने के लिए की जाती है। यह घटनाएं चाहे किसी व्यक्ति के आचरण द्वारा हो अथवा ना हो इसमें व्यक्ति के आचरण के अलावा अन्य प्रकार की घटनाओं जैसे-

    दुर्घटना, आग से क्षति को भी शामिल किया गया है। अंग्रेजी विधि में बीमा की सभी संविदा (केवल जीवन बीमा को छोड़कर) क्षतिपूर्ति की संविदा मानी जाती है।


    अंग्रेजी विधि में क्षतिपूर्ति की संविदा अभिव्यक्त, अथवा विवक्षित हो सकती है। डगडेल बनाम लोवरिग (1875) 10 एल. आर. सी. पी. 196 का वाद इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण वाद है इस वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कुछ ट्रके वादी के कब्जे में थी जिस पर वादी प्रतिवादी और के. पी. कंपनी उस पर अपना मालिकाना हक मानते थे। इस प्रकार उन ट्रकों के तीन दावेदार थे। प्रतिवादी द्वारा वादी से अपने कार्य के लिए ट्रकों को मांगने पर वादी ने प्रतिवादी से एक क्षतिपूर्ति बांड मांगा परंतु प्रतिवादी ने कोई बांड नहीं दिया। क्षतिपूर्ति बांड ना मिलने पर भी वादी ने प्रतिवादी को उन ट्रकों को दे दिया। इस वाद में ट्रकों का मालिकाना हक न्यायालय ने के. पी. कंपनी के पक्ष में निर्णय किया। कंपनी ने वादी जिसके कब्जे में ट्रके थी के विरुद्ध दावा किया। ट्रक प्रतिवादी द्वारा क्षतिग्रस्त हो गई थी। न्यायालय ने वादी के विरुद्ध निर्णय दिया। वादी को के पी• कंपनी की क्षतिपूर्ति करनी पड़ी। अब वादी ने प्रतिवादी के विरुद्ध क्षतिपूर्ति का वाद किया। प्रतिवादी का तर्क था कि क्षतिपूर्ति का बांड ना देने के कारण कोई क्षतिपूर्ति की संविदा नहीं हुई थी। लेकिन न्यायालय ने निर्णय दिया कि प्रतिवादी द्वारा वादी से ट्रक ग्रहण करने से यहां वादी और प्रतिवादी के बीच विवक्षित क्षतिपूर्ति की संविदा हुई थी। इसलिए प्रतिवादी वादी की क्षतिपूर्ति के दायित्वाधीन है।

    भारतीय संविदा अधिनियम विनिर्दिष्टतः उपबंधित नहीं करता है कि कोई विवक्षित संविदा हो सकती है। लेकिन सेक्रेट्री आफ स्टेट बनाम दी बैंक ऑफ इंडिया लिमिटेड ए• आई. आर• 1938 पी.सी. 191 नामक वाद में प्रिवी काउंसिल ने क्षतिपूर्ति की विवक्षित संविदा को भी मान्यता दी है। इस प्रकार क्षतिपूर्ति की संविदा अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है। इसका तात्पर्य यह है कि हानि से बचाने की प्रतिज्ञा अभिव्यक्त और विवक्षित दोनों हो सकती है।


    क्षतिपूर्तिधारी के अधिकार

    संविदा अधिनियम 1872 की धारा 125 क्षतिपूर्तिधारी को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार दिया गया है, जबकि उस पर वाद लाया जाए। यदि क्षतिपूर्ति की संविदा का वचन ग्रहीता अपने प्राधिकार के क्षेत्र के भीतर कार्य करता है तो वह क्षतिपूर्तिकरता से निम्नलिखित वसूल करने का हकदार है-

    1. ऐसी नुकसानी जिसको संदाय करने के लिए क्षतिपूर्तिधारी किसी वाद में विवश किया जाए जिसमें क्षतिपूर्ति करने का वचन लागू हो।

    2. ऐसे सभी खर्चे जिसको देने के लिए वह ऐसे किसी वाद में विवश किया जाए यदि वह वाद लाने या प्रतिरक्षा करने में उसने वचनदाता के आदेशों का उल्लंघन न किया हो और इस प्रकार कार्य किया हो जिस प्रकार कार्य करना क्षतिपूर्ति की किसी संविदा के अभाव में उसके लिए प्रज्ञा युक्त होता अथवा यदि वचन दाता ने वह वाद लाने या प्रतिरक्षा करने के लिए उसे प्राधिकृत किया हो।

    3. वे सब धन राशियां जो उसने ऐसे किसी वाद के किसी समझौतों के निबंधों के अधीन दी हो यदि वह समझौता वचन दाता के आदेशों के प्रतिकूल ना रहा हो और ऐसा रहा हो जैसा समझौता क्षतिपूर्ति की संविदा के अभाव में वचन ग्रहीता के लिए करना प्रज्ञायुक्त होता अथवा यदि वचन दाता ने उस वाद का समझौता करने के लिए उसे प्राधिकृत किया हो।

    इस प्रकार क्षतिपूर्ति धारी क्षतिपूर्तिदाता से क्षतिपूर्ति की संविदा के निबंधों तथा सीमाओं के अंतर्गत रहते हुए अपने द्वारा उठाए गए नुकसानी की क्षतिपूर्ति करा सकता है।

    प्रश्न-

    क्षतिपूर्ति की संविदा को परिभाषित कीजिए तथा क्षतिपूर्तिधारी के अधिकारों की व्याख्या कीजिए??


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    यह लेख  लखनऊ यूनिवर्सिटी , लखनऊ से बी.ए एल.एल.बी कर रहे छात्र  Justin Marya द्वारा  कई वेबसाइट की मदद से लिखा गया है।

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