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 अभिकर्ता (एजेन्ट) के कर्तव्य (Duties of Agent)

 अभिकर्ता व मालिक के बीच विधिक सम्बन्धों को अभिकर्ता के मालिक के प्रति कर्तव्य एवं अभिकर्ता के मालिक के विरूद्ध अधिकारों से स्पष्ट किया जा सकता है। 

अभिकर्ता के कर्तव्य (Duties of an agent )


1. स्वयं अपने द्वारा पालन किये जाने वाले कार्यों को किसी अन्य व्यक्ति को प्रत्यायोजित (Deligate) न करने का कर्तव्य धारा 190 में स्वीकृत दशाओं के अलावा एजेन्ट का यह कर्तव्य है कि वह अपने द्वारा पालन किये जाने वाले कार्यों को किसी अन्य व्यक्ति को न सौंपे ।


2. आपातकाल में मालिक के हितों की संरक्षा करने का कर्तव्य धारा 189 के अन्तर्गत एजेन्ट का यह कर्तव्य है कि वादी की सम्पत्ति को आपात् परिस्थितियों में क्षति से बचाये। इसके अन्तर्गत वह ऐसे कार्य भी करने की शक्ति रखता है जिसे मालिक ने अभिव्यक्त रूप से करने के लिए नहीं दी हैं।


3. मालिक के निर्देशानुसार प्रतिस्थापित एजेन्ट की नियुक्ति करना ( Duty to obey Principal direction)- धारा 194 के अनुसार, यदि मालिक ने कोई ऐसा कार्य सौंपा है। जिसमें विशेषज्ञ को नामित किया जाना चाहिए तो एजेन्ट का कर्तव्य है कि वह उपयुक्त व्यक्ति को प्रतिस्थापित एजेन्ट के रूप में नियुक्त करे।


4. मालिक के निर्देशानुसार कार्य करने का कर्तव्य धारा 211 के अन्तर्गत प्रत्येक एजेन्ट का पहला कर्तव्य यह है कि वह मालिक के निर्देशों के अनुसार कार्य करे। यदि ऐसे निर्देशों का अभाव है, तो वह उसी रूढ़ि के अनुसार कार्य करे जो उस स्थान पर, जहाँ ऐसा एजेन्ट ऐसे कारोबार का संचालन करता है, उसी किस्म का कारोबार करने में प्रचलित हो।


यदि एजेन्ट अल्प तरीके से कार्य करता है तो वह उसके लिए अपने मालिक को उससे होने वाली हानि या क्षति की प्रतिपूर्ति करने के लिए उत्तरदायी रहेगा।


उदाहरण के लिए लिल्ले बनाम डबलडे" नामक वाद में एक एजेन्ट को आदेश दिया गया कि वह माल को एक विशेष माल गोदाम में रखे। उसने कुछ माल अन्य माल गोदाम में रखा जो उसकी दृष्टि में उतना ही सुरक्षित था। उसमें अचानक आग लग जाने से माल नष्ट हो गया। इस हानि के लिए एजेन्ट को दायी ठहराया गया। मालिक के आदेशों को न मानने पर एजेन्ट पर पूर्ण दायित्व आ जाता है।


इसी प्रकार यदि मालिक का कोई किसी विषय पर निदेश न हो तो उसे व्यापार की प्रचलित प्रथा के अनुसार कार्य करना चाहिये। जैसे जिस व्यापार में उधार माल बेचने की प्रथा नहीं है उसमें यदि एजेन्ट ने माल उधार बेच दिया है तो वह उससे होने वाली हानि के लिए उत्तरदायी होगा।" इसी प्रकार पानी बाई बना म साईर कन्वर" के वाद में एजेन्ट ने मालिक द्वारा बताई गई कीमत से कम कीमत पर माल बेचा, न्यायालय ने एजेन्ट को दायी ठहराया।


इसी प्रकार बैंकिग संव्यवहारों में बैंक का यह कर्तव्य है कि ग्राहक की कारोबारी गोपनीयता बरते। यदि एजेन्ट के रूप में बैंक इस गोपनीयता को भंग करता है तो बैंक ग्राहक के प्रति दायी होगा।


5. अपेक्षित कौशल और तत्परता से कार्य करने का कर्तव्य (Duty to required best skill and diligence)- धारा 212 के अनुसार-


" अभिकर्ता एजेन्सी के कारोबार का संचालन उतने कौशल से करने के लिए आबद्ध है जितना वैसे कारोबार में लगे हुए व्यक्तियों में साधारणतः होता है, जब तक कि मालिक को उसके कौशल के अभाव की सूचना न हो। एजेन्ट सदा ही युक्तियुक्त तत्परता से कार्य करने के लिए और उसका जितना कौशल है उसे उपयोग में लाने के लिए और अपनी स्वयं की उपेक्षा, कौशल के अभाव या अवचार के प्रत्यक्ष परिणामों की बाबत अपने मालिक को प्रतिकर देने के लिए आबद्ध या अवचार से अप्रत्यक्षतः या दूरस्थतः कारित हो" ।


इस धारा के आधार पर-

(i) एजेन्ट कौशल और तत्परता बरतने के लिए उपाबद्ध है,

(ii) कौशल और तत्परता का स्तर वैसे ही कारोबार में लगे हुए व्यक्तियों के आधार पर होगा जो साधारणतः वैसे कारोबार में बरतते हैं।

(iii) यदि एजेन्ट इस स्तर का कौशल या तत्परता नहीं बरतता है कि इसके प्रत्यक्षत परिणामों से उत्पन्न हानि के लिए प्रतिकर देने के लिए एजेन्ट दायी है।

(iv) एजेन्सी ऐसी हानि के लिए दायी नहीं है जो ऐसी उपेक्षा से अप्रत्यक्षतः ( Indirectly) या दूरस्थत: (Remotely) परिणामों से सम्बन्ध रखती है।


उदाहरण के लिए, कलकत्ता के एक व्यापारी A का एक एजेन्ट B लन्दन में है। B को कुछ धन इस आशय से दिया जाता है कि वह उसे अपने मालिक A को भेजे। B उस धन को काफी समय तक प्रतिधारित (Retain) किये रहता है। उस धन के न मिलने के फलस्वरूप A दिवालिया हो जाता है। B उस धन, उस पर ब्याज तथा विनिमय दर में परिवर्तन से होने वाली समस्त हानि के लिए A के प्रति उत्तरदायी है किन्तु वह किसी अन्य हानि के लिए दायी नहीं है। "


6. मालिक की मांग पर उचित लेखा देने का कर्तव्य (Duty to render proper accounts to his principal)

-धारा 213 के अनुसार, प्रत्येक एजेन्ट का कर्तव्य है कि वह अपने कारोबार से सम्बन्धित लेखों का सही हिसाब-किताब रखे तथा मालिक की मांग पर उन्हें मालिक के निरीक्षण हेतु पेश करे। लेखे पेश करने का ही कर्तव्य नहीं है अपितु एजेन्ट का यह भी कर्तव्य है कि लेखे की प्रत्येक प्रविष्टियों (Entries) से मालिक को संतुष्ट भी करे।


एजेन्ट अपने मालिक के पास लेखे देने मात्र से ही अपने कर्तव्य से उन्मुक्त नहीं हो जाता, उसे ऐसे लेखों की व्याख्या भी देनी होगी और लेखों के समर्थन (Support) वाउचर्स भी पेश करने होंगे।” इसी प्रकार वेतन संवितरण (Disbursement) के समर्थन में भी एजेन्ट का दायित्व है कि वाउचर्स पेश करे। 4


एजेन्ट की मृत्यु के पश्चात् विधिक प्रतिनिधि (Legal representative) मालिक के शोध्य धन के लिए उत्तरदायी होता है, लेकिन वह उस सीमा तक ही उत्तरदायी है जितनी मालिक की सम्पदा उसे मिली है।” एजेन्ट द्वारा की गई उपेक्षा के लिए भी विधिक प्रतिनिधि समाप्ति की सीमा तक दायी है।" मालिक को भी यह अधिकार है कि वह एजेन्ट के विधि क प्रतिनिधि के विरूद्ध वाद दायर करे ।


7. कठिनाई की दशा में मालिक से सम्पर्क करने का कर्तव्य (Duty to consult the principal in cases of difficulty)- धारा 214 में एजेन्ट पर यह कर्तव्य आरोपित किया गया है कि वह कठिनाई की दशा में अपने मालिक से सम्पर्क रखे और अनुदेश (Instruction) प्राप्त करने में समस्त युक्तियुक्त तत्परता बरते।

एजेन्सी की प्रत्येक तात्विक बात का मालिक को ज्ञान रहना चाहिए और इसके लिए यह एजेन्ट का दायित्व भी है कि वह प्रत्येक बात की संसूचना मालिक को देता रहे। विशेषकर कठिनाई के समय मालिक से अवश्य सम्पर्क कर दिशा- निर्देश प्रदान करे।


8. एजेन्सी कारोबार से अपने हित को पृथक रखने का कर्तव्य (Duty to put separate his own interest from the business of agency)- धारा 215 के अनुसार, एजेन्ट का यह कर्तव्य है कि अपने व्यक्गित हित को मालिक के कारोबारी हित से पृथक रखे। कभी-कभी एजेन्ट मालिक के संव्यवहार के साथ व्यक्तिगत हित भी रखता है ऐसी स्थिति में दोनों हितों में मुकाबला (Conflict) होने की संभावना है अतः एजेन्ट का कर्तव्य है कि ऐसे मुकाबले से एजेन्सी कारोबार को पृथक रखे। पावर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा मालिक के पक्ष में विभाजन विलेख (Partiton deed) का निष्पादन करना अवैध नहीं होगा।"


9. गुप्त लाभ लौटाने का कर्तव्य (Duty to return secret profits)- धारा 216 के अनुसार, यदि एजेन्ट ने मालिक का कार्य करते हुए कोई गुप्त लाभ प्राप्त किया है तो उसका कर्तव्य है कि उस लाभ को मालिक को लौटा दे।


एजेन्सी मालिक व एजेन्ट के वैश्वासिक सम्बन्धों (Fiduciary Relations) पर निर्भर करती है अतः धारा 215 व 216 इसी बात को प्रदर्शित करती हैं। धारा 216 के प्रावधान इस प्रकार हैं-


"यदि कोई एजेन्ट अपने मालिक के ज्ञान के बिना एजेन्सी के कारोबार में अपने मालिक के लेखे व्यवहार करने के बजाय अपने ही लेखे व्यवहार करता है तो मालिक एजेन्ट से उस फायदे का दावा करने का हकदार है जो एजेन्ट को उस संव्यवहार से हुआ है।"

If an agent, without the knowledge of his principal, deals in the bussiness of the agency on his own account instead of an account his principal, the principal is entitled to claim from the agent any benefit which have resulted to him from the transaction.


इस धारा की व्यवस्था में शामिल गुप्त लाभ शब्द में ऐसे सभी लाभ शामिल हैं जो अपने वेतन के अतिरिक्त एजेन्ट प्राप्त करता हैं तथा वे ऐसे लाभ है कि यदि उसे एजेन्ट होने का अवसर न दिया जाता तो वह उन्हें प्राप्त नहीं कर सकता था। 'रिश्वत' ऐसे लाभ का उदाहरण है भले ही एजेन्ट की घूसखोरी से मालिक को हानि न हुई हो या घूस का एजेन्ट के आचरण पर कोई प्रभाव न पड़ा हो।" एक मामले में एक नीलामकर्ता ने विक्रेता के अतिरिक्त क्रेता से भी कमीशन प्राप्त कर लिया। उसे इस कमीशन का हिसाब मालिक को देना पड़ा। "


इस धारा के प्रावधान को धारा में ही दिये गए दृष्टांत से इस प्रकार स्पष्ट किया गया है। A अपने लिए अपने एजेन्ट को एक विशेष मकान खरीदने का निर्देश देता है। A से B कहता है। कि वह मकान नहीं खरीदा जा सकता और B उस मकान को अपने लिए खरीद लेता है। A को यह पता लग जाने पर कि मकान B ने खरीद लिया है। B को बाध्य कर सकता है कि वह उस मकान को उसी मूल्य पर A को बेचे जितने में उसने खरीदा था।


10. मालिक के नाम से प्राप्त राशियों को मालिक को देने का कर्त्तव्य (Agent's duty to pay sums received for principal) - धारा 218 के अनुसार एजेन्ट का यह कर्त्तव्य है। कि वह उन सब राशियों का मालिक को संदाय (Pay) करे जो उसने मालिक के नाम से प्राप्त की हैं या जो कारोबार से सम्बन्धित हैं। हाँ ऐसा करते समय एजेन्ट अपने खर्चों व व्ययों को काट (Deducut) सकता है।


इस धारा के अनुसार यदि एजेन्ट मालिक की ओर से किसी अवैध या शून्य संविदा (Unlawful or void contract) के अधीन भी कोई धन प्राप्त करता है तो वह उसको भी अपने मालिक को संदाय (भुगतान) करने के लिए आबद्ध (Bound) है। लेकिन यदि एजेन्सी का सृजन ही अवैध या शून्य संविदा से हुआ है तो वह ऐसे आबद्ध नहीं होगा । "


11. स्वामित्व स्थापित न करने का कर्त्तव्य (Duty not to Create ownership)- एजेन्सी का आधार पारस्परिक विश्वास है। एजेन्सी के दौरान एजेन्ट मालिक से विभिन्न प्रकार का माल व सम्पत्ति प्राप्त करता है ऐसी स्थिति में एजेन्ट का कर्तव्य है कि उन माल में से किसी माल पर अपना स्वामित्व स्थापित न करे तथा तीसरे पक्षकार को भी उस माल या सम्पत्ति पर स्वामित्व स्थापित न करने दे ।

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