संसदीय विशेषाधिकार // parliamentary privilege // Constitutional Law//

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Introduction 

संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करने से है।

इन विशेषाधिकारों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 में परिभाषित किया गया है।


Credit:- Harshit Dwivedi Education 

       



अर्थ

संसदीय विशेषाधिकार विशेष अधिकार, उन्मुक्तियां और छूटें हैं जो संसद के दोनों सदनों, इनकी समितियों और इनके सदस्यों को प्राप्त होते हैं। यह इनके कार्यों की स्वतंत्रता और प्रभाविता के लिए आवश्यक हैं। इन अधिकारों के बिना सदन न तो अपनी स्वायत्तता, महानता तथा सम्मान को संभाल सकता है और न ही अपने सदस्यों को, किसी भी संसदीय उत्तरदायित्वों के निर्वहनों से सुरक्षा प्रदान कर सकता है। संविधान ने संसदीय अधिकार उन व्यक्तियों को भी दिए हैं जो संसद के सदनों या इसकी किसी भी समिति में बोलते तथा हिस्सा लेते हैं। इनमें भारत के महान्यायवादी तथा केंद्रीय मंत्री शामिल हैं। यहां यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि संसदीय अधिकार राष्ट्रपति के लिए नहीं हैं जो संसद का एक अंतरिम भाग भी है।


वर्गीकरण

संसदीय विशेषाधिकारों को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है: 

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. वे अधिकार, जिन्हें संसद के दोनों सदन सामूहिक रूप से प्राप्त करते हैं, तथा:


2. वे अधिकार, जिनका उपयोग सदस्य व्यक्तिगत रूप से करते हैं।



सामूहिक विशेषाधिकार

संसद के दोनों सदनों के संबंध में सामूहिक विशेषाधिकार निम्न हैं: 

1. इसे अपनी रिपोर्ट, वाद-विवाद और कार्यवाही को प्रकाशित करने तथा अन्यों को इसे प्रकाशित न करने देने का भी अधिकार है। 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम ने, सदन की पूर्व अनुमति बिना संसद की कार्यवाही की सही रिपोर्ट के प्रकाशन की प्रेस की स्वतंत्रता को पुनर्स्थापित किया किंतु यह सदन की गुप्त बैठक के मामले में लागू नहीं है। 

2. यह अपनी कार्यवाही से अतिथियों को बाहर कर सकती है तथा कुछ आवश्यक मामलों पर विचार-विमर्श हेतु गुप्त बैठक कर सकती है।


3. यह अपनी कार्यवाही के संचालन, कार्य के प्रबंध तथा इन मामलों के निर्णय हेतु नियम बना सकती है।


4. यह सदस्यों के साथ-साथ बाहरी लोगों को इसके विशेषाधिकारों के हनन या सदन की अवमानना करने पर निदित, चेतावनी या कारावास द्वारा दंड दे सकती है (सदस्यों के मामले में बर्खास्तगी या निष्कासन भी)।


5. इसे किसी सदस्य की बंदी, अवरोध, अपराध सिद्धि, कारावास या मुक्ति संबंधी तत्कालिक सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।

6. यह जांच कर सकती है तथा गवाह को उपस्थिति तथा संबंधित पेपर तथा रिकॉर्ड के लिए आदेश दे सकती है।


7. न्यायालय, सदन या इसकी समिति की कार्यवाही की जांच के लिए निषेधित है।


8 सदन क्षेत्र में पीठासीन अधिकारी की अनुमति के बिना कोई व्यक्ति (सदस्य या बाहरी व्यक्ति) बंदी नहीं बनाया जा सकता और न ही कोई कानूनी कार्यवाही (सिविल या आपराधिक) की जा सकती है..



व्यक्तिगत विशेषाधिकार विधानसभा के दोनों सदनों के सदस्य व्यक्तिगत अधिकारों से संबंधित विशेषाधिकार। निम्न हैं: 


1. उन्हें संसद की कार्यवाही के दौरान, कार्यवाही चलने से 40 उस पर दिन पूर्व तथा बंद होने के 40 दिन बाद तक बंदी नहीं बनाया जा सकता है। यह अधिकार केवल नागरिक मुकदमों में उपलब्ध है तथा आपराधिक तथा प्रतिबंधात्मक निषेध मामलों में नहीं।


2. उन्हें संसद में भाषण देने की स्वतंत्रता है। कोई सदस्य संसद या इसकी समिति में दिए गए वक्तव्य या मत के लिए किसी भी न्यायालय की किसी भी कार्यवाही के लिए जिम्मेदार नहीं है। यह स्वतंत्रता, संविधान के प्रावधान तथा संसद की कार्यवाही के नियम एवं स्थायी आदेश के संचालन से संबधित है।


3. वे न्याय निर्णयन सेवा से मुक्त हैं। वे संसद के सत्र में किसी न्यायालय में लंबित मुकदमे में प्रमाण प्रस्तुत करने या उपस्थिति होने के लिए मना कर सकते हैं।


सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण:

केराज्य बनाम के. अजीत और अन्य (2021) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, "विशेषाधिकार एवं उन्मुक्ति देश के सामान्य कानून से छूट का दावा करने के लिये प्रवेश द्वार नहीं हैं, खासकर इस मामले में आपराधिक कानून प्रत्येक नागरिक की कार्रवाई को नियंत्रित करता है।

जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने केरल सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें विधानसभा में आरोपित अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की मांग की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संसदीय विशेषाधिकार प्रतिरक्षा का माध्यम नहीं हैं और जो विधायक बर्बरता एवं अपराध में लिप्त हैं, वे संसदीय विशेषाधिका रतथा आपराधिक अभियोजन से उन्मुक्ति का दावा नहीं कर सकते हैं।


विशेषाधिकारों का हनन एवं सदन की अवमानना

जब कोई व्यक्ति या प्राधिकारी किसी संसद सदस्य की व्यक्तिगत और संयुक्त क्षमता में इसके विशेषाधिकारों, अधिकारों और उन्मुक्तियों का अपमान या उन पर अक्रमण करता है तो इसे अपराध विशेषाधिकार हनन कहा जाता है और यह सदन द्वारा दण्डनीय है।"


किसी भी तरह का कृत्य या चूक, जो सदन, इसके सदस्यों या अधिकारियों के कार्य संपादन में बाधा डाले, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सदन की मर्यादा, शक्ति तथा सम्मान के विपरीत परिणाम दे, सदन को अवमानना माना जाएगा।"


यद्यपि दो अभिव्यक्तियों 'विशेषाधिकार हनन' और 'सदन की अवमानना' को एक-दूसरे के लिए प्रयुक्त किया जाता है तथ्यापि इनके अर्थ भिन्न है। सामान्यतः विशेषाधिकार हनन सदन की अवमानना हो सकती है। इसी प्रकार सदन को अवमानना में विशेषाधिकार हनन शामिल हो सकता है। तथापि सदन की अवमानना के अर्थ का व्यापक प्रभाव है। विशेषाधिकार हनन के बिना भी सदन की अवमानना हो सकती है।" इसी प्रकार ऐसे कृत्य जो किसी विशिष्ट विशेषाधिकार का हनन नहीं हैं परन्तु वे सदन की मर्यादा और प्राधिकार के विरूद्ध सदन की अवमानना हो सकते हैं।" उदाहरण के लिए सदन के विधायी आदेश को न मानना विशेषाधिकार का हनन नहीं है, परन्तु सदन की अवमानना के लिए दण्डित किया जा सकता है।


विशेषाधिकारों के स्रोत


मूल रूप में, संविधान (अनुच्छेद 105) में दो विशेषाधिकार बताए गए हैं। ये हैं, संसद में भाषण देने की स्वतंत्रता तथा इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार। अन्य विशेषाधिकारों के संदर्भ में, ये ब्रिटिश हाउस ऑफ कामन्स, इसकी समितियों तथा आरंभ तिथि (26 जनवरी, 1950) से इसके सदस्यों की तरह समान हैं जब तक कि संसद द्व ारा घोषित न हों। 1978 का 44वां संशोधन अधिनियम कहता है कि संसद के दोनों सदनों के अन्य विशेषाधिकार, इसकी समितियों और सदस्यों को आरंभ होने की तिथि (20 जून, 1979) से ही प्राप्त हो गए। इसका अर्थ है कि अन्य विशेषाधिकार के संदर्भ में सभी स्थिति समान रहेगी। दूसरे शब्दों में, संशोधन सिर्फ मौखिक रूप से संशोधित होगा। इसे ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ से बिना किसी परिवर्तन के लिया गया है।"


यह उल्लेखनीय है कि संसद ने अब तक विशेषाधिकारों को संहिताबद्ध करने के संबंध में कोई विशेष विधि नहीं बनाया है। वे 5 स्त्रोतों पर आधारित हैं:


1. संवैधानिक उपबंध,


2. संसद द्वारा निर्मित अनेक विधियां,


3. दोनों सदनों के नियम,


4. संसदीय परंपरा, और;


5. न्यायिक व्याख्या।


Reference:- 

Drishti Ias

M. laxmikant 7t edition 


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यह लेख  लखनऊ यूनिवर्सिटी , लखनऊ से बी.ए एल.एल.बी कर रहे छात्र  Justin Marya द्वारा  कई वेबसाइट की मदद से लिखा गया है। 

This article has been written by Justin Marya, a student of BA LLB from Lucknow University, Lucknow with the help of various websites.

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