What is equity ( साम्य ) , meaning, definition and principal of equity// political science//

0

 साम्य का अर्थ


साम्य का अर्थ क्या है? साम्य (Equity) विधि का वह स्रोत है जो विधि के किसी विशिष्ट नियम के अभाव में प्रारम्भ होता है तथा कार्य करता है.



साम्य, अत्यन्त ही सामान्य भाव में हम उसी को साम्य कहने के अभ्यस्त हैं जो व्यवहारों में “नैसर्गिक न्याय”, “ईमानदारी” और “सच्चाई” में पाया जाता है. मनुष्य के जब पुराने नियम अत्यन्त संकीर्ण हो जाते हैं, और आगे बढ़ती हुई सभ्यता से विसंगत प्रतीत होने लगते हैं, तो उनके उत्तरोत्तर विस्तार तथा उन्हें समाज के नये दृष्टिकोण के अनुकूल बनाने के लिये एक तन्त्र की आवश्यकता होती है.


साम्य की परिभाषा

अरस्तू (Aristotle) के अनुसार, साम्य विधि का शोधन है क्योंकि विधि अपनी व्यापकता के कारण दोषपूर्ण होती है.



ब्लैकस्टोन (Blackstone) के अनुसार, साम्य विधि की आत्मा तथा अन्तरात्मा के रूप में कार्य करता है. उसके द्वारा विध्यात्मक विधि का अर्थ लगाया जाता है और नैसर्गिक विधि की रचना की जाती है. इस सम्बन्ध में साम्य न्याय का पर्याय है


साम्य का क्षेत्र

साम्य के क्षेत्र (Scope of Equity) के विषय में कोई निश्चित कथन कठिन है, परन्तु इतना निर्विवाद है कि राज्य की विद्यमान विधि को अनम्यता, दोषों तथा न्यूनताओं से रक्षा करने तथा न्याय के हित को प्रोत्साहन देने के लिये ही साम्य का उद्भव हुआ और उद्देश्य की पूर्ति के लिये उसने निम्नलिखित तीन प्रकार से सामान्य विधि के अनुपूरण में अपने क्षेत्र को सामान्यतया विस्तृत किया, अर्थात्-


नये अधिकारों,

नये उपचारों तथा

नई प्रक्रिया के प्रवर्तन द्वारा

प्रथम, साम्य ने ऐसे अधिकारों का प्रवर्तन किया जिनके प्रवर्तन में सामान्य विधि के न्यायालय असफल रहे. दूसरे सामान्य विधि के अधिकारों के प्रवर्तन के लिये साम्य ने अतिरिक्त उपचारों का विकास किया और तीसरे सामान्य विधि के न्यायालयों की दोषपूर्ण प्रक्रिया में सुधार किया |.


साम्य का उद्भव तथा विकास

इंग्लैण्ड में साम्य (Equity) का उद्भव 13वीं शताब्दी के अन्तिम भाग में हुआ, जबकि देश में एडवर्ड प्रथम का शासन था. तत्कालीन लागू कानून कामन लॉ कहा जाता था जिसने प्रथम एडवर्ड का काल आते-आते एक निश्चित रूप धारण कर लिया था और उसका प्रशासन अलग-अलग न्यायालयों द्वारा किया जाता था, ये न्यायालय थे-


राजा का न्यायालय (King’s Bench)

सार्वजनिक प्रतिकथन न्यायालय (Court of Common Pleas), तथा

राजकोष न्यायालय (Court of Exchequer)

ये सभी न्यायालय प्रधात्मक विधि (Customary law) तथा सांविधिक विधि (Statute law) द्वारा चलाये जाते थे जिसे कॉमन लॉ कहा जाता है. इन न्यायालयों की संकीर्णता तथा अत्यन्त जटिलता के कारण इंग्लैण्ड में साम्य न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का उदय हुआ.





लैटिन में यह कहावत है, "Ubi Jus Ibi Remedium " जिसका अर्थ है "जहां अधिकार है वहां उपचार है"। कहावत में कहा गया है कि उन स्थितियों में जहां सामान्य कानून एक अधिकार प्रदान करता है, यह उस अधिकार के उल्लंघन के लिए एक उपाय भी देता है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यह सिद्धांत केवल वहीं लागू होता है जहां अधिकार और उपाय दोनों न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में हैं। समानता के कानून में, निषेधाज्ञा और विशिष्ट प्रदर्शन भी उपलब्ध उपचारों के प्रकार हैं।


इस कहावत को "aquitas sequiturlegem", के रूप में भी व्यक्त किया गया है, जिसका अर्थ है कि इक्विटी ऐसे उपाय की अनुमति नहीं देगी जो कानून के विपरीत हो . यह सिद्धांत बताता है कि इक्विटी पूरक कानून है और इसका स्थान नहीं लेता है। न्यायालय का विवेक कानून और समानता द्वारा शासित होता है जो एक दूसरे के अधीन होते हैं। 


जो समता चाहता है उसे समता अवश्य करनी चाहिए

इस सिद्धांत में कहा गया है कि वादी भी अदालत की शक्तियों के अधीन है और इस प्रकार समानता के सिद्धांत का पालन करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य है। इस कहावत की चिंता वादी के भविष्य के आचरण से है। इस प्रकार, यह कहावत उस पक्ष पर लागू होती है जो न्यायसंगत राहत चाहता है क्योंकि यह निर्धारित करता है कि वादी को भी अपने प्रतिद्वंद्वी के अधिकार को पहचानना और प्रस्तुत करना होगा।


जो समता में आता है उसे साफ हाथों से आना चाहिए

यह सिद्धांत पार्टियों के पिछले आचरण से संबंधित है और कहता है कि जो व्यक्ति समानता की तलाश में अदालत में आता है, उसे अतीत में किसी असमान कार्य में शामिल नहीं होना चाहिए। यह कहावत वादी के पिछले व्यवहार से संबंधित है। यह कहावत वादी के सामान्य व्यवहार की चिंता नहीं करती है, अशुद्ध हाथों की रक्षा केवल उन स्थितियों में लागू होती है जहां आवेदक के गलत कार्य और उस अधिकार के बीच संबंध होता है जिसे वह लागू करना चाहता है।


विलंब समता को पराजित करता है

इस सिद्धांत के लिए लैटिन कहावत है "विजिलेंटिबस नॉन डॉर्मिएंटिबस एक्विटास सबवेनिट" जिसका अर्थ है कि इक्विटी सतर्क लोगों की सहायता करती है, न कि उनकी जो सोए रहते हैं उनके अधिकारों। दावा पेश करने में अनुचित देरी को laches के रूप में जाना जाता है। लैचेस के परिणामस्वरूप दावे भी ख़ारिज हो सकते हैं। इस प्रकार, एक पक्ष को उचित समय की अवधि के भीतर कार्रवाई का दावा करना चाहिए। ऐसी कुछ स्थितियाँ हैं जहाँ परिसीमा का कानून स्पष्ट रूप से लागू किया जाता है, ऐसे मामलों में, एक विशेष कानूनी स्थिति होती है जहाँ एक समय अवधि, जो स्पष्ट रूप से निर्धारित की गई है, समाप्त हो गई है और पार्टी को कार्रवाई का मुकदमा लाने से रोक दिया गया है।


समानता समता है

यह सिद्धांत लैटिन कहावत द्वारा व्यक्त किया गया है Aequitas est quasi aequalitas जिसका अर्थ है कि समानता ही समानता है। इस कहावत का तात्पर्य यह है कि जहां तक संभव हो, इक्विटी मुकदमेबाजी करने वाले पक्षों को समान स्तर पर रखने और उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों को बराबर करने का प्रयास करती है। सामान्य कानून एक पक्ष को दूसरे पक्ष पर लाभ दे सकता है, लेकिन समता न्यायालय, जहां भी संभव हो, पक्षों को समान स्तर पर रखता है।




न्यायालय अधिनियम, 1873 तथा 1875

पारित किये गये जिनके द्वारा साम्य तथा विधि का एकीकरण हो गया. सामान्य विधि तथा चांसरी के पुराने न्यायालय अब समाप्त हो गये. अब न्याय के क्षेत्र में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना हुई, जहाँ एक ही न्यायाधीश द्वारा विधि तथा साम्य दोनों को प्रकाशित किया जाने लगा किन्तु दोनों में विरोध उत्पन्न होने पर साम्य के सिद्धान्तों को विधि के ऊपर महत्व दिया जाने लगा |


निष्कर्ष

समानता से संबंधित कानून मिसाल के तौर पर विकसित हुए हैं और इसका उद्देश्य पार्टियों को न्यायसंगत अधिकार और उपचार प्रदान करना है। समानता के निर्णय काफी हद तक न्यायाधीश के विवेक और निष्पक्ष एवं उचित कारण की समझ पर आधारित होते हैं। समानता सदियों पुरानी है और आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, कानून के मामले में भी यही स्थिति है। न्याय के लिए कानून और समता दोनों महत्वपूर्ण हैं। जहां कानून की कठोरता से न्याय को खतरा होता है, वहां समता कायम रहती है और जहां समता का कोई उपाय नहीं है वहां कानून का पालन किया जाता है। इस प्रकार, न्याय दोनों पर निर्भर करता है और इस प्रकार, न्याय देने के लिए दोनों से परामर्श किया जाना चाहिए।

Publisher Intro

    About Blogger/publisher


यह लेख  लखनऊ यूनिवर्सिटी , लखनऊ से बी.ए एल.एल.बी कर रहे छात्र  Justin Marya द्वारा  कई वेबसाइट की मदद से लिखा गया है। 

This article has been written by Justin Marya, a student of BA LLB from Lucknow University, Lucknow with the help of various websites.

Note 

अगर आपको हमारे वेबसाइट से कोई फायदा पहुँच रहा हो तो कृपया कमेंट और अपने दोस्तों को शेयर करके हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि हम और अधिक आपके लिए काम कर सकें.

धन्यवाद.

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

 


 


To Top