जानिए भारतीय न्याय संहिता में Attempt to Commit Suicide को लेकर क्या है प्रावधान?

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 केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार यानी 11 अगस्त को लोकसभा में भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में बदलाव से जुड़े तीन विधेयक लोकसभा में पेश किए। गृहमंत्री ने भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 लोकसभा में पेश किए।


साथ ही सदन ने इन विधेयकों को आगे की समीक्षा के लिए गृह मामलों से जुड़ी संसद की स्थाई समिति को भेज दिया है। अगर ये कानून बन जाता है तो IPC की जगह भारतीय न्याय संहिता ले लेगी। और धारा 309 खत्म हो जाएगा।

और यह तीनों कानून 1 जुलाई 2024 से लागू होंगे l


बता दें, धारा 309 की काफी लंबे समय से आलोचना हो रही है। सबसे पुराने प्रावधानों में से एक है। साल 2018 में संसद में एक कानून पारित कर इसे निरर्थक बना दिया गया था, लेकिन IPC का हिस्सा बना हुआ है। इसका दुरुपयोग भी हो रहा है।


आईपीसी की धारा 309 क्या कहती है?


IPC, 1860 की धारा 309 कहती है कि अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है तो ये अपराध है। उसे दंडित किए जाने का प्रावधान है। इसमें एक साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।


19वीं सदी में अंग्रेजों ने ये कानून लाया था। ये कानून उस समय की सोच को दर्शाता है जब खुद को मारना या मारने की कोशिश करना राज्य के साथ-साथ धर्म के खिलाफ भी अपराध माना जाता था।


आपको बता दें, 1971 में विधि आयोग ने अपनी 42वीं रिपोर्ट में आईपीसी की धारा 309 को खत्म करने की सिफारिश की थी।


इसके बाद, तब के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार आईपीसी (संशोधन) विधेयक, 1978 लेकर आई। विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया और पारित किया गया, लेकिन लोकसभा में मंजूरी मिलने से पहले संसद भंग कर दी गई, और विधेयक पारित नहीं हो पाया।


जियान कौर बनाम पंजाब राज्य (1996) मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने आईपीसी की धारा 309 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। हालांकि, 2008 में विधि आयोग ने अपनी 210वीं रिपोर्ट में कहा कि आत्महत्या की कोशिश करने वालों को चिकित्सा और मानसिक देखभाल की आवश्यकता है, न कि सज़ा की।


मार्च 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने भी संसद से सिफारिश की थी कि वो धारा 309 को खत्म करने पर विचार करे।


इसके कुछ साल बाद, यानी 2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक (MHCA) पारित हुआ और 2018 में लागू हुआ। इसमें स्पष्ट कर दिया गया कि धारा 309 (आत्महत्या की कोशिश करने पर सजा) का इस्तेमाल केवल अपवाद के रूप में किया जाएगा। साथ ही राज्य आत्महत्या की कोशिश करने वालों के उपचार पर ध्यान दे।


क्या MHCA आने के बाद धारा 309 के तहत मुकदमा दर्ज होना बंद हो गया?


नहीं, ऐसा बिलकुल भी नहीं है। इसके बाद भी कई मामले दर्ज हो रहे हैं। 20 मई, 2020 को गुड़गांव की भोंडसी जेल में एक कैदी ने कथित तौर पर कैंची से खुद को मारने की कोशिश की थी। आईपीसी की धारा 309 के तहत मामला दर्ज किया गया। फिर, 8 जून, 2020 को एक भागे हुए जोड़े ने कथित तौर पर बेंगलुरु के अशोक नगर पुलिस स्टेशन में हेयर डाई पीकर आत्महत्या का प्रयास किया। उन पर आईपीसी की धारा 309 के तहत मामला दर्ज किया गया था।


क्या नया कानून 'आत्महत्या की कोशिश' को पूरी तरह से अपराध मुक्त करता है?


जवाब है नहीं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) आत्महत्या की कोशिश करने के अपराध को पूरी तरह से अपराध से मुक्त नहीं करता है।


BNS की धारा 224 में कहा गया है कि जो कोई भी किसी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने की कोशिश करेगा, उसे एक साल तक की जेल हो सकती है। उदाहरण से समझिए। जैसे एक प्रदर्शनकारी जो पुलिस को अन्य प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार करने से रोकने के लिए आत्मदाह का प्रयास करता है।

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