निम्नलिखित की परिभाषा दीजिए—प्रस्ताव, स्वीकृति,वचन,प्रतिफल,करार,संविदा,अवैध करार,शून्यकरणीय संविदा,शून्य संविदा??

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प्रश्न 1. निम्नलिखित की परिभाषा दीजिए—
Define the following:


1. प्रस्ताव(Proposal),
2. स्वीकृति (Acceptance),
3. वचन (Promise).
4. प्रतिफल (Consideration),
 5. करार (Agreement),
6. संविदा (Contract),
7. अवैध करार (Illegal Agreement).
8. शून्यकरणीय संविदा (Voidable Contract),
9. शून्य संविदा (Void Contract)।





उत्तर- 1. प्रस्ताव (Proposal)

संविदा अधिनियम की धारा 2 (a) के अनुसार " जबकि एक व्यक्ति किसी बात को करने या करने से प्रविरत (abstain) रहने की अपनी रजामन्दी (willingness) ऐसे कार्य या प्रतिविरति के प्रति किसी दूसरे व्यक्ति की अनुमति प्राप्त करने की दृष्टि से उसे दूसरे व्यक्ति को संज्ञान करता है तब उसके बारे में कहा जाता है कि वह प्रस्ताव करता है।"

"When one person signifies to another his willingness to do or to abstain from doing anything with a view to obtaining the assent of that other to such act or abstinence, he is said to make a Proposal."


प्रस्तावना में एक व्यक्ति किसी बात को करने या प्रविरत (abstain) रहने की अपनी रजामन्दी किसी अन्य व्यक्ति को इस दृष्टि से संज्ञापित (signify) करता है कि ऐसे कार्य या प्रविरति के प्रति वह अपनी अनुमति प्रदान करे।

इस प्रकार प्रस्थापना में-

1. एक व्यक्ति जिसे प्रस्तावकर्ता (Promisor) कहा जाता है किसी अन्य व्यक्ति को अपनी इच्छा या रजामन्दी प्रकट करता है।

2. ऐसी रजामन्दी किसी बात को करने या न करने से प्रविरत रहने के लिए होती है।

3. ऐसी रजामन्दी प्राप्त करने का उद्देश्य किसी अन्य व्यक्ति की अनुमति प्राप्त करना होता है।

उदाहरण (Illustration) 'अ' अपनी घड़ी 100 रुपये में बेचना चाहता है और इसी उद्देश्य से वह 'च' के समक्ष इस इच्छा को प्रकट करता है, इसलिए कि वह घड़ी खरीद ले या उसकी अनुमति दे दे। यहां 'अ' की इच्छा की अभिव्यक्ति प्रस्तावना कहलाती है। प्रत्येक प्रस्ताव में निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक होता है-


1. प्रत्येक प्रस्ताव संसूचित किया जाना चाहिए (Every Proposal must be (cornmunicated) 

2. प्रस्ताव विधिक सम्बन्ध स्थापित करने के इरादे से किया जाना चाहिए (It must be made with a view to create legal relations) .

3. प्रस्ताव निश्चित होना चाहिए (Proposal must be certain) ।


2. स्वीकृति (Acceptance)

संविदा निर्माण के लिए प्रस्ताव के बाद स्वीकृति आवश्यक होती है। ऐन्सन ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि "स्वीकृति का प्रस्ताव के साथ वही सम्बन्ध है जो कि जलती हुई तीली का बारूद की गाड़ी के साथ।" स्वीकृति ही प्रस्ताव को करार में परिवर्तित कर देती है।

धारा 2 (b) के अनुसार "जबकि वह व्यक्ति जिसे प्रस्ताव किया गया है, उसके प्रति अपनी अनुमति प्रदान करता है तब कहा जाता है कि प्रस्ताव स्वीकृत हो गया है।"

"When the person to whom the proposal is made signifies his assent thereto the proposal is said to be accepted." इस प्रकार स्वीकृति को बन्धनकारी होने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा किया जाना


आवश्यक होता है—

 1. स्वीकृति को संसूचित (Communicate) किया जाना आवश्यक है। 

2. स्वीकृति की संसूचना उसी व्यक्ति द्वारा की जानी चाहिए जो कि ऐसा करने का अधिकार रखता हो।

3. स्वीकृतिकर्ता को प्रस्ताव का ज्ञान होना चाहिए।

4. स्वीकृति पूर्ण तथा बिना शर्तों के साथ होनी चाहिए।

5. स्वीकृति निश्चित समय में तथा निश्चित ढंग से की जानी चाहिए। 

6. स्वीकृति प्रस्ताव के बने रहने के दौरान की जानी चाहिए।


मेसर्स भगवती प्रसाद पवन कुमार बनाम भारत संघ, ए० आई० आर० 2006 एस० सी० 233 में अपीलार्थी से रेलवे ने यह प्रस्ताव इस शर्त के साथ किया कि प्रस्ताव स्वीकृति योग्य न होने पर चेक को तुरन्त वापस लौटा दिया जाए अन्यथा यह माना जाएगा कि अपीलार्थी ने प्रस्ताव को अपने दावे की अन्तिम सन्तुष्टि के रूप में स्वीकार कर लिया है। चेक का भुगतान करा लेने पर दावे की पूर्ण सन्तुष्टि मानी जायेगी। उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि बिना किसी विरोध के चेक का नकदीकरण किया जाना प्रस्ताव की बिना शर्त स्वीकृति मानी जायेगी।


3. वचन (Promise )

संविदा अधिनियम की धारा 2 (b) में 'वचन' को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार "कोई प्रस्ताव स्वीकृत हो जाने पर वचन का रूप धारण करता है।" अर्थात् स्वीकृत किया हुआ प्रस्ताव वचन कहलाता है।

"A proposal when accepted becomes a promise."


वचन की परिभाषा से स्पष्ट है कि वचन के लिए कोई प्रस्ताव मात्र ही पर्याप्त नहीं है.

प्रस्ताव की स्वीकृति दी जानी आवश्यक है। अर्थात् वचन में दो तत्व पाए जाते हैं-


1. प्रस्ताव (Proposal) तथा 

2. स्वीकृति (Acceptance) |

इस प्रकार एक वचन के लिए प्रस्ताव तथा स्वीकृति दोनों की ही संपूर्ण शर्तों को पूरा करना आवश्यक होता है। यदि प्रस्ताव तथा स्वीकृति दोनों शर्तों को पूरा नहीं किया जाता है तो वचन पूर्ण नहीं होता है।

उदाहरण (Illustration) 'अ' कुछ काम करने के बदले 'ब' को 100 रुपये देने को कहता है। यदि 'व' 'अ' की शर्तों के तहत कार्य करने को तैयार हो जाता है तथा अपनी स्वीकृति दे देता है तब यह वचन कहलाता है।


4. प्रतिफल (Consideration)

निर्माण के लिए का होना अत्यन्त आवश्यक है। प्रतिफल को धारा 2 (d) में परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार- "जब एक प्रतिज्ञाकर्ता (Promisor) की इच्छा पर, प्रतिज्ञागृहीता (Promisee) या किसी अन्य व्यक्ति ने कोई कार्य किया है या करने से प्रतिविरत (abstain) रहा है, या कार्य करता है या करने से प्रतिविरत (abstain) रहता है।


'या करने की या प्रतिविरत रहने की प्रतिज्ञा करता है तब ऐसा कार्य या प्रतिविरात या प्र उस प्रतिज्ञा के लिए प्रतिफल कहलाती है।"

"When, at the desire of the promisor, the promisee or any other person has done or abstained from doing, or does or abstains from doing or promises to do or to abstain from doing something, such act or abstinence or promise is called a consideration for the promise."


उदाहरण (Illustration) 'अ' 'ब' से एक घड़ी 500 रुपये में क्रय कर लेने का प्रस्ताव करता है। 'ब' 500 रुपये में इसके खरीदने की अपनी स्वीकृति देता है। यहां 500 रुपये 'अ' के लिए घड़ी का प्रतिफल है ।


प्रतिफल की परिभाषा से निम्नलिखित तत्व निकलते हैं-

1. प्रतिज्ञाकर्ता की इच्छा पर (At the desire of promisor), 

2. प्रतिज्ञाग्रहीता या अन्य कोई व्यक्ति (Promisor or any other person),

3. कोई कार्य किया है या उससे प्रतिविरत रहा है (Has done or abstained from doing),

4. या करता है या प्रतिविरत रहता है (or does or abstains from doing); 

5. या करने या करने से प्रतिविरत रहने की प्रतिज्ञा करता है (or promises to do or to abstain from doing something),

 6. तब ऐसा कार्य या प्रतिविरति या प्रतिज्ञा उस प्रतिज्ञा के लिए प्रतिफल कहलाती (Such act or abstinence or promise is called consideration for the promise)।

इसके अलावा प्रतिफल के लिए निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक है-

1. प्रतिफल का वचनदाता के लिए लाभकारी होना आवश्यक नहीं है। 

2. प्रतिफल का वास्तविक (Real) होना आवश्यक है।

3. प्रतिफल का वैध (Legal) होना आवश्यक है।

4. प्रतिफल पर्याप्त (Adequate) या अपर्याप्त (Inadequate) भी हो सकता है।

 5. प्रतिफल भूतकालिक, वर्तमान तथा भावी (Past, executed and executory) हो सकता है।


मूल ऋणी द्वारा अभिप्राप्त लाभ के लिए प्रतिभू द्वारा प्रस्थापित सांपार्श्विक प्रतिभूति पर्याप्त प्रतिफल है। (श्रीमती प्रकाशवती जैन बनाम पंजाब स्टेट इण्डस्ट्रियल डेवलपमेन्ट कॉरपोरेशन, ए० आई० आर० 2012 पंजाब एण्ड हरियाणा 13 ) ।


अंग्रेजी विधि के अनुसार, प्रतिफल सदैव प्रतिग्रहीता के द्वारा दिया जाना चाहिए, परन्तु भारतीय विधि के अनुसार यह आवश्यक नहीं है। संविदा अधिनियम की धारा 2 (घ) में स्पष्टतया लिखा है कि प्रतिफल प्रतिग्रहीता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिया जा सकता है।


5. करार (Agreement)

करार संविदा का महत्वपूर्ण भाग होता है अर्थात् संविदा के लिए करार का होना आवश्यक है। इसे अधिनियम की धारा 2 (e) में परिभाषित किया गया है। “हर एक वचर और ऐसे वचनों का हर एक संवर्ग जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल हो, करार कहलाता है।"

(Every promise and every set of promises forming the consideration for each other is an agreement). इस प्रकार स्पष्ट है कि करार के लिए दो बातें आवश्यक हैं- 

(1) वचन (Promise), तथा 

(2) प्रतिफल (Consideration)। वचन, प्रस्ताव तथा स्वीकृति से मिल कर बनता है।

इस प्रकार-


प्रस्ताव (Proposal) + स्वीकृति (Acceptance) + प्रतिफल = करार (Agreement)। परिभाषा से स्पष्ट है कि मात्र वचन करार नहीं हो सकता है। उसके लिए प्रतिफल का होना आवश्यक है। करार के लिए यह भी आवश्यक है कि पक्षकारों के मध्य विधिक दायित्व उत्पन्न होता हो। सैविनी ने कहा है, "दो या अधिक व्यक्तियों के मध्य विधिक सम्बन्धों को प्रभावी बनाने की समान आशय की अभिव्यक्ति ही करार हैं। "


6. संविदा (Contract)


धारा 2 (h) के अनुसार - विधि द्वारा प्रवर्तनीय प्रत्येक करार संविदा कहलाती हैं। (An agreement enforceable by law is a contract) । परिभाषा से यह स्पष्ट होता है कि किसी करार का होना तथा ऐसे करार का विधित: प्रवर्तनीय (Enforceable) होना संविदा सृजन के लिए अति आवश्यक है।


कोई करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय है यदि--


1. वह सक्षम पक्षकारों (Competent parties) के मध्य हो।


2. पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति (Free consent) रही हो। 3. उसका उद्देश्य एवं प्रतिफल विधिपूर्ण हो (the object or consideration


must be lawful)


4. वह शून्य (Void) घोषित न किया गया हो।


5. कुछ अपवादों को छोड़कर लिखित तथा रजिस्ट्रीकृत (Written or Registered) होना चाहिए।


उक्त परिभाषा स्पष्ट करती है कि शब्द 'करार' संविदा से अधिक विस्तृत हैं। संविदा के लिए यह आवश्यक है कि करार विधि द्वारा प्रवर्तनीय (Enforceable) हो ।


सुखविन्दर कौर बनाम अमरजीत सिंह (ए० आई० आर० 2012 पंजाब एण्ड हरियाणा 197) के मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि अपंजीकृत विक्रय के करार से सम्पत्ति में हित अथवा स्वत्व का सृजन नहीं होता। विक्रय-विलेख द्वारा निष्पादित संविदा से ही ऐसा हित एवं स्वत्व सृजित हो सकता है।


7. अवैध करार (Illegal agreement)


जब किसी करार का उद्देश्य या प्रतिफल विधिविरुद्ध होता है तब उसे अवैध करार कहते हैं। किसी करार का उद्देश्य या प्रतिफल निम्नलिखित परिस्थितियों में अवैध होता है- 1. जबकि वह विधि द्वारा निषिद्ध (forbidden by law) हो।


2. जबकि करार की प्रकृति ऐसी हो जो किसी विधि के उपबन्धों को निष्फल कर दे।


3. कपटपूर्ण (Fraudulent) हो।


4. जो किसी अन्य व्यक्ति के शरीर या सम्पत्ति को क्षति कारित करता हो।


5. जबकि वह न्यायालय द्वारा अनैतिक (Immoral) या लोकनीति (Public Policy) के विरुद्ध घोषित किया गया हो।

अवैध करार है।


इस प्रकार यदि किसी करार का उद्देश्य या प्रतिफल उपरोक्तानुसार है तब ऐसा करार


8. शून्यकरणीय संविदा


(Voidable Contract)


अधिनियम की धारा 2 (i) के अनुसार "वह संविदा जो कि उसके पक्षकारों में से एक या अधिक के विकल्प पर विधि द्वारा प्रवर्तनीय हो किन्तु अन्य पक्षकार या पक्षकारों के विकल्प पर नहीं, तब वह शून्यकरणीय (Voidable) संविदा कहलाती है।" "An agreement which is enforceable by law at the option of one or more


of the parties thereto, but not at the option of the other or others is a


voidable contract."


शून्यकरणीय संविदा एक ऐसी दोषयुक्त संविदा है जिसका लाभ एक पक्षकार चाहे तो उठा सकता है लेकिन दूसरा नहीं। सामान्यतः प्रपीड़न (Coercion). असम्यक् असर अथवा अनुचित प्रभाव (Undue influence), कपट (Fraud), दुर्व्यपदेशन (Misrepresentation) तथा भूल (Mistake) के अधीन की गई संविदायें शून्यकरणीय होती हैं।


उदाहरण (Illustration)


'अ' कपट द्वारा 'ब' को अपने साथ संविदा करने के लिए प्रेरित करता है। 'अ' ऐसी संविदा के अनुपालन के लिए आबद्ध है जबकि 'व' अपने विकल्प पर उसका प्रवर्तन करा सकता है या नहीं।.


9. शून्य संविदा (Void Contract)


धारा 2 (j) के अनुसार, "जो संविदा विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं रह जाती हैं तब वह


शून्य हो जाती है जब वह प्रवर्तनीय नहीं रह जाती।" "A contract which ceases to be enforceable by law becomes void when it ceases to be enforceable."


इस प्रकार प्रवर्तन की दृष्टि से शून्य संविदायें दो प्रकार की हो सकती हैं- 1. ऐसी संविदायें जो शुरू से ही प्रवर्तनीय नहीं होती हैं जिन्हें आरम्भतः शून्य (Void


ab initio ) संविदा कहते हैं।


2. ऐसी संविदायें जो संविदा किये जाने के समय तो प्रवर्तनीय होती हैं परन्तु बाद में प्रवर्तनीय नहीं रह जाती हैं तब उन्हें प्रवर्तनीय न रह जाने पर शून्य (Void) संविदा कहते हैं।


उदाहरण (Illustration)


उदाहरण – 'अ' 'ब' के साथ चोरी की अफीम को खरीदने की संविदा करता है। यह आरम्भतः शून्य (Void ab initio ) संविदा है।


'अ 'ब' का मकान खरीदने की संविदा करता है परन्तु वह संविदा से पहले जल कर नष्ट हो जाता है तो ज्यों ही मकान नष्ट होता है संविदा शून्य हो जाती है। अर्थात् शून्य संविदा से तात्पर्य उन संविदाओं से है जिनका प्रवर्तन विधि के द्वारा नहीं


कराया जा सकता है।


अवन्ती को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटी बनाम मनोहर (ए० आई० आर० 2012 छत्तीसगढ़ 146) के मामले में प्रतिफल रहित करार को शून्य माना गया है। (Agreement without is void under Section 25 of Contract Act.)

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