संविदा विधि( Law of contract) part-1, 5-महत्वपूर्ण प्रश्न(important questions) -2023 ??

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 प्रश्न 6. "प्रस्ताव के लिए स्वीकृति का वही महत्व है जो बारूद से भरी हुई गाड़ी के लिए जलती हुई दिया सलाई का है।" स्पष्ट कीजिए।

"Acceptance is to offer what a lighted match is to train of gun powder",


Discuss.


उत्तर- एन्सन (Auson) ने यह कहा है कि-" प्रस्ताव के लिए स्वीकृति की वही स्थिति है जो कि बारूद से भरी हुई गाड़ी के लिए जलती हुई दियासलाई की है। इससे कुछ ऐसी चीज उत्पन्न होती है जिसे वापस नहीं किया जा सकता या जिसे अकृत (undone) नहीं किया जा सकता। बारूद केवल तब तक बारूद के रूप में पड़ा रहता है जब तक कि वह भीगा हुआ रहता है। उसे वहाँ से कभी भी वापस हटाया जा सकता है। लेकिन दियासलाई लगने के बाद उसका स्वरूप ही बदल जाता है। इसी प्रकार स्वीकृति से पूर्व प्रस्ताव को कभी भी वापस लिया जा सकता है अथवा उसका उपखण्डन किया जा सकता है।"


वस्तुतः वह स्वीकृति ही है जिससे विधिक अधिकारों (Legal Rights) का उद्भव होता है। जब तक प्रस्ताव को स्वीकृत नहीं कर लिया जाता, प्रस्तावकर्त्ता किसी दायित्व से बाध्य नहीं होता। स्वीकृति मिलते ही प्रस्तावकर्त्ता अपने प्रस्ताव को पूरा करने के लिए आवद्ध हो जाता है। अब वह प्रस्ताव को न तो वापस ले सकता है और न ही उसे विखण्डित कर सकता है।


प्रश्न 7. भारतीय संविदा अधिनियम 1872 में 'आशय' की प्रासंगिकता क्या है? What is the relevancy of intention in Indian Contract Act, 18722


उत्तर- भारतीय संविदा अधिनियम में आशय की प्रासंगिकता - भारतीय संविदा अधिनियम में 'आशय' की प्रासंगिकता और आंग्ल विधि में आशय की प्रासंगिकता भिन्न- भिन्न हैं। भारतीय विधि में 'आशय' का स्पष्ट रूप से प्रावधान नहीं है। धारा 10 में संविदा के आवश्यक तत्वों में 'आशय' का नहीं है बल्कि संविदा विधिपूर्ण उद्देश्य के लिए होनी चाहिए। संविदा निर्माण में दोनों पक्षकारों का एक दूसरे से वैध सम्बन्ध स्थापित करने का आशय होता है जिससे अधिकार एवं दायित्व का जन्म होता है। समाज में व्यक्तियों के बीच में अनेक करार होते रहते हैं। किन्तु उनमें से सभी विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होते हैं अर्थात् उसमें वैध संविदा सृजित करने का आशय नहीं होता है जैसे साथ खाना खाने का करार, घूमने का करार, सिनेमा देखने का करार, आदि में आशय का अभाव होता है। जिससे ये विधिमान्य करार की श्रेणी में नहीं आते हैं। पक्षकारों का आशय उनके आचरण, परिस्थितियों, निष्पादित करार, करार के प्रारूप एवं उनके सार से लगाया जाना चाहिए।


इसके विपरीत आंग्ल विधि में आशय के बिना कोई करार विधिमान्य नहीं है जैसे- (1) बेलफोर बनाम बेलफोर, (1919) के० वी० 261 के बाद में पति द्वारा पत्नी को स्वास्थ्य लाभ के लिए 30 पौन्ड प्रतिमाह देने का वचन को न्यायालय ने संविदा के तुल्य नहीं माना।


(2) गोल्ड बनाम (1970) क्यू० बी० 275 के बाद में पति जब अपनी पत्नी को छोड़ने लगा तो वचन दिया कि पत्नी को 15 पौंड प्रति सप्ताह दिया करेगा। निर्णीत हुआ कि यहाँ विधिक सम्बन्ध स्थापित करने का आशय नहीं था।


प्रश्न 8. एक प्रस्ताव कब प्रतिज्ञा में बदल सकता है? When can a proposal be converted in to promise?


उत्तर- वचन (Promise ). किसी प्रस्ताव को स्वीकार कर लेना या उसके प्रति अपनी अनुभूति संज्ञापित कर देना 'प्रतिग्रहण' कहलाता है। कोई प्रस्ताव प्रतिग्रहीत हो जानेपर 'वचन' (प्रतिज्ञा ) का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्रतिगृहीत की


गयी प्रस्थापना ही वचन (प्रतिज्ञा) है।


अर्थात्-प्रस्थापना और प्रतिग्रहण मिलकर वचन (प्रतिज्ञा) बनता है। एक प्रस्ताव को प्रतिज्ञा में बदलने के लिए निम्न बातों का पालन किया जाना आवश्यक


1. प्रतिग्रहण का निरपेक्ष और बिना किसी शर्त के होना आवश्यक है। 2. प्रतिग्रहण के समय प्रतिगृहिता को प्रस्थापना का ज्ञान होना चाहिए।


3. यदि किसी रीति विशेष का उल्लेख न हो, तो प्रतिग्रहण सम्यक एवं युक्तियुक्त रीति से प्रतिगृहीत किया जाना चाहिए।


4. प्रतिग्रहण अभिव्यक्त अथवा विवक्षित हो सकता है।


5. प्रस्ताव की शर्तों के पालन अथवा प्रतिफल की प्राप्ति द्वारा प्रस्थापना को प्रतिगृहीत किया जा सकता है।


6. प्रतिग्रहण उसी व्यक्ति द्वारा होना चाहिए जिससे प्रस्थापना की गयी है। 7. प्रतिग्रहण प्रस्थापना के चालू रहने के दौरान किया जाना आवश्यक है।


8. प्रतिग्रहण से प्रस्थापनाकर्ता की संसूचित किया जाना आवश्यक है । 9. सशर्त प्रस्थापना में शर्त को प्रतिग्रहीत किया जाना आवश्यक है।


प्रश्न 9. निविदा क्या है? प्रस्ताव है या प्रस्ताव के लिए आमंत्रण है? is tender? whether Tender Notice is proposal or on imitiation to offer?


उत्तर - निविदा निविदा प्रस्ताव के लिए आमंत्रण मात्र है। वास्तव में पालन की


प्रस्थापना को ही निविदा कहते हैं। निविदा उचित प्रारूप में उचित मात्रा में तथा पालन के


इच्छुक तथा सक्षम पक्षकार द्वारा की जानी चाहिए।


निविदा के लिए विज्ञप्ति तथा सूचना प्रस्ताव नहीं होती है। निविदा की स्वीकृति के पश्चात् कभी-कभी यह स्थायी प्रस्ताव में परिणत हो जाता है।


विधिमान्य निविदा की अनिवार्य शर्तें निम्नलिखित हैं-


1. निविदा बिना किसी शर्त के होना चाहिए।


2. निविदा को उचित समय और स्थान पर किया जाना चाहिए। 3. यह उचित रूप से किया जाना चाहिए।


4. निविदा करने वाला व्यक्ति पालन के योग्य, इच्छुक एवं तत्पर होना चाहिए। 5. निविदा में माल का निरीक्षण करने का युक्तियुक्त अवसर दिया जाना चाहिए।


6. निविदा समुचित व्यक्ति को किया जाना चाहिए।


प्रश्न 10. आरम्भतः शून्य संविदा की व्याख्या कीजिए।


Explain void Ab-initio contract.


उत्तर- आरम्भतः शून्य संविदा. ऐसे करार जो पूर्ण रूप से शून्य होते हैं उन्हें आरम्भतः शून्य करार कहते हैं।

अप्राप्तवय द्वारा किये गये करार आरम्भतः शून्य होते हैं। इन्हें अप्राप्तवय व्यक्ति के विरुद्ध प्रवर्तित नहीं किया जा सकता। एक अवयस्क द्वारा किए गए निम्न करारों को पूर्ण रूप से शून्य माना गया है-


1. साधारण करार, 2. अकेले द्वारा निष्पादित प्रामिसरी नोट्स, 3. बंधपत्र, 4. गिरवी,


5. बंधक, 6. विक्रय, 7. पट्टा।


इस सम्बन्ध में 'मोहरी बीबी बनाम धर्मदास घोष' (1903) 30 कलकत्ता 539 का एक महत्त्वपूर्ण मामला है। इसमें 20 वर्ष की आयु के एक अप्राप्तवय व्यक्ति ने, जिसके लिए न्यायालय ने संरक्षक एवं प्रतिपाल्य नियुक्त कर रखा था, एक साहूकार के पक्ष में 20,000 रुपये के लिए बन्धक विलेख निष्पादित कर दिया। साहूकार द्वारा वस्तुतः उसे 8,000 रुपये ही दिये गये थे। इस संव्यवहार के कुछ ही समय पूर्व संरक्षक द्वारा साहूकार को बन्धककर्ता के अप्राप्तवय होने की सूचना दे दी गयी थी। अप्राप्तव्य की ओर से बन्धक को अपास्त करने के लिए वाद लाया गया, जिसका यह कहकर विरोध किया गया कि यह एक शून्यकरणीय संविदा होने से अप्राप्तवय द्वारा उधार ली गयी धनराशि को धारा 64 व 65 के अधीन वापस लौटाया जाना चाहिए। प्रिवी कौंसिल ने यह धारण किया कि यह संविदा पूर्ण रूप से शून्य है, अतः उधार लिये गये धन को वापस लौटाने का प्रश्न ही नहीं उठता है।

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