संविदा विधि( Law of contract) part-1 महत्वपूर्ण प्रश्न(important questions)??

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The Indian contract act,1872 (Part-1)
पांच महत्वपूर्ण प्रश्न??



प्रश्न 1. करार किसे कहते हैं?

What is agreement?

उत्तर -  करार किसी संविदा का प्रथम चरण है, अर्थात् प्रत्येक संविदा में करार सन्निहित होता है। करार के बिना संविदा का उद्भव नहीं हो सकता। सामान्य बोल- चाल की भाषा में हम इसे 'समझौता', 'ठहराव' आदि नामों से भी सम्बोधित करते हैं। भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2 (ङ) में करार की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-


“हर एक वचन और ऐसे वचनों का हर एक संवर्ग, जो एक-दूसरे के लिए प्रतिफल हो, करार है।" "Every promise and a set of promises forming the consideration for each other is an agreement."

इस परिभाषा से करार के दो तत्व स्पष्ट होते हैं-

1. वचन,

2. प्रतिफल ।

'वचन' प्रस्थापना एवं प्रतिग्रहण से मिलकर बनता है। इस प्रकार करार, प्रस्थापना, प्रतिग्रहण एवं प्रतिफल का मिला-जुला परिणाम है।


प्रश्न 2. व्यतिकारी वचन का क्या अर्थ है?
What does the reciprocal promise mean?

उत्तर- व्यतिकारी वचन. - व्यतिकारी वचनों को पारस्परिक वचन कहा जाता है। संविदा अधिनियम की धारा 2 (च) में व्यतिकारी वचनों की परिभाषा दी गई है। इसके अनुसार - "वे वचन जो एक दूसरे के लिए प्रतिफल या प्रतिफल का भाग हों, व्यतिकारी वचन कहलाते हैं।"(Promises which form the consideration or part of the consideration for each other are called reciprocal promises) 

अर्थात् ऐसा प्रत्येक वचन, जो एक-दूसरे के लिए प्रतिफल या प्रतिफल का भाग हो, व्यतिकारी वचन कहलाता है। ऐसे वचनों में एक पक्षकार द्वारा कोई एक कार्य करने का वचन दूसरे पक्षकार द्वारा कोई दूसरा कार्य करने के वचन का प्रतिफल होता है। विवाह का पारस्परिक वचन ऐसा ही वचन होता है।


प्रश्न 3. एक पक्षीय तथा द्विपक्षीय संविदा क्या है?
What is Unilateral and Bilateral contract? 

अभिप्राय ऐसी संविदा से है जिसमें प्रतिज्ञा केवल एक पक्षकार द्वारा की जाती है। इसमें  एक पक्षीय संविदा तथा द्विपक्षीय संविदा. – एक पक्षीय संविदा सेओर से केवल प्रस्ताव रखा जाता है और दूसरी ओर से प्रस्ताव को स्वीकृत किया जाता है। जबकि द्विपक्षीय संविदा में दोनों पक्षों की ओर से प्रतिज्ञायें की जाती हैं, उदाहरणार्थ- क, ख से विवाह की प्रतिज्ञा करता है और ख, क से विवाह की प्रतिज्ञा करती है। द्विपक्षीय संविदा में एक पक्षकार की प्रतिज्ञा दूसरे पक्षकार की प्रतिज्ञा के प्रतिफल के रूप में होती है। इस प्रकार इसमें दोनों पक्षों की ओर से पारस्परिक प्रतिज्ञायें की जाती हैं अर्थात् दोनों में प्रतिज्ञाओं का आदान-प्रदान होता है, इसलिये यह द्विपक्षीय संविदा है।


प्रश्न 4. आभासी संविदा क्या है?
What is Quasi contract?


उत्तर- आभासी संविदा – सामान्यतः संविदाएँ पक्षकारों के कार्य का परिणाम होती हैं। पक्षकार ही किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने का करार करते हैं और उन्हीं पर उसके अनुपालन का दायित्व रहता है। लेकिन कभी-कभी पक्षकारों के बीच प्रत्यक्ष रूप से ऐसा कोई करार नहीं किया जाता है, फिर भी उनके बीच किये गये अथवा किये जाने वाले आचरण से ऐसे दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे कि किसी संविदा से उत्पन्न होते हैं। विधि में ऐसी संविदाओं को विभिन्न नामों से सम्बोधित किया जाता है, जैसे-आभासी संविदा, गर्भित संविदा, संविदा-कल्प, विवक्षित संविदा आदि।

आभासी संविदा को विभिन्न विधिशास्त्रियों के द्वारा परिभाषित किया गया है, यथा-

 पोलक के अनुसार - " आभासी संविदाएँ वे संविदाएँ हैं जिनमें विषय-क्षेत्र का काल्पनिक विस्तार होने के कारण ऐसे कर्त्तव्यों का आवर्तन होता है जो वास्तव में इसके अन्तर्गत नहीं आते हैं, अतः यह तथ्यतः संविदाएँ नहीं हैं, किन्तु विधिक संविदाएँ हैं। "


विनफील्ड के अनुसार - "आभासी संविदा एक ऐसा दायित्व है जो विधि के किसी शीर्षक के अन्तर्गत पूर्णतया निर्देशित करने योग्य नहीं है तथा जिसे किसी विशिष्ट व्यक्ति पर लिए होनी च किसी अन्य विशिष्ट व्यक्ति को कुछ धन देने को इस आधार पर लादा जाता हैं कि धन की करने का अ देनगी न करने से पहले वाले व्यक्ति को अनुचित लाभ होगा।"



प्रश्न 5. विधिमान्य संविदा की अनिवार्य शर्तों का उल्लेख कीजिए।
Describe the essential conditions of a valid contract.

उत्तर - विधिमान्य संविदा की अनिवार्य शर्तें. भारतीय संविदा अधिनियम की परिस्थितियों, धारा 2 (ज) में 'संविदा' को विधिक प्रवर्तनीय करार के रूप में परिभाषित किया गया है। धारा 2 (ज) के अनुसार, "वह करार जो विधितः प्रवर्तनीय हो, संविदा है।" इसका अभिप्राय यह है कि सभी करार संविदा नहीं होते लेकिन सभी संविदायें करार होती हैं। कोई करार केवल तभी संविदा का रूप ले सकता है जब वह विधितः प्रवर्तनीय हो। उसे विधितः प्रवर्तनीय बनाने के लिए कतिपय आवश्यक शर्तों की पूर्ति अपेक्षित है, जो निम्नलिखित हैं-

1. करार का होना,

2. पक्षकारों का सक्षम होना,

3. स्वतन्त्र सहमति का होना,

4. विधिपूर्ण उद्देश्य एवं प्रतिफल होना, 

5. करार को अभिव्यक्त रूप में शून्य घोषित न होना।


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