अर्द्ध अथवा गर्भित संविदा (QUASI-CONTRACT) क्या है? यह कितने प्रकार की होती है ?

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 अर्द्ध अथवा गर्भित संविदा (QUASI-CONTRACT)



परिचय (Introduction)

किसी संविदा के अभाव में कुछ निश्चित सामाजिक संबंध किसी व्यक्ति पर निष्पादन के दायित्व आरोपित करते हैं। इन्हें अर्द्धसंविदा के नाम से जाना जाता है जो स्थाई संविदा के मांति कुछ दायित्वों की स्थापना करते हैं।


एन्सन के शब्दों में "किसी विधि प्रणाली में कुछ परिस्थितियों में यह आवश्यक हो जाता है. कि बिना किसी करार के एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के लिये दायित्वाधीन माना जाय, क्योंकि यदि ऐसा न किया गया तो पहले वाला व्यक्ति धन या अन्य लाभ को प्रतिधारित कर सकेगा, जिसका कि विधि के अनुसार कोई अन्य अधिकारी है या उन परिस्थितियों के अस्तित्व में होने पर संविदा ऐसा उपचार का प्रबन्ध करता था।"


अर्द्ध या गर्भित संविदा के मुख्य लक्षण (Salient features of Quasi Contracts are)


(a) प्रथम ऐसे अधिकार हमेशा एक धन संबंधी अधिकार होते हैं और सामान्यतः (सदैव नहीं यह निर्धारित धन होता है।


(b) द्वितीय: यह पक्षकारों के बीच करार से उत्पन्न नहीं होता बल्कि यह विधि द्वारा आरोपित किया जाता है।


(c) तृतीय यह ऐसा अधिकार है जो समस्त संसार के विरुद्ध उपलब्ध नहीं है बल्कि केवल एक व्यक्ति या व्यक्तियों के विरुद्ध उपलब्ध है। इस संदर्भ में यह एक संविदात्मक दायित्व होता है।



 अर्द्ध संविदाओं के प्रकार
(TYPES OF QUASI CONTRACT)


निम्नलिखित पाँच परिस्थितियां है जिनको अधिनियमानुसार अर्द्ध सविदाएं कहा गया है। इन पाँच परिस्थितियों का परिणाम स्थाई संविदा नहीं होता।


(i) संविदा करने में अयोग्य व्यक्ति को प्रदान की गयी आवश्यक वस्तुओं के लिए दावा (Claim for necessaries supplied to persons incapable of contracting)


Section 68 (Indian Contract Act-1872)

कोई व्यक्ति जिसने संविदा करने में अयोग्य व्यक्ति के जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति किया हो, अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति से उसका मूल्य वसूलने का दावा करने का अधिकारी है। इसी प्रकार यदि ऐसे व्यक्ति की आवश्यकताओं की खरीद के लिये धन दिया गया है तो उसकी भरपाई का दावा भी किया जा सकता है।


उदाहरण के लिए, 'अ ब एक पागल व्यक्ति (Junatic) या उसकी पत्नी को या उसके बच्चे को जिसकी सुरक्षा और देखभाल के लिए ब जिम्मेदार है, को जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इस स्थिति में 'अ', 'ब' की सम्पत्ति से कीमत वसूल करने का दावा कर सकता है। इस तरह के दावे को मान्य होने के लिए अ को यह साबित करना होगा कि जो पूर्ति की गई है वह वास्तव में अ और उसके आश्रितों के आवश्यक थी विलासिता की वस्तुओं की पूर्ति के लिए कोई दावा नहीं किया जा सकता। यदि 'ब' की कोई सम्पत्ति नहीं है तो अ स्पष्ट रूप से कोई दावा नहीं कर सकता।



(b) किसी अन्य व्यक्ति को दिये गये धन की वापसी का अधिकार (Right to recover money paid for another person)


Section 69 (Indian Contract Act-1872)

एक व्यक्ति ऐसे धन को संदाय देता है जिसको देने करने के लिये यह अन्य व्यक्तिदायित्वाधीन है। अन्य व्यक्ति से उसकी वापसी का हकदार है जबकि वह धन उसने अपने हित को संरक्षित करने के लिये दिया है।


यहाँ यह व्यक्ति जो धन का सदाय करता है उसको ईमानदारी से यह विश्वास होना चाहिये कि उसका हित भुगतान की मांग कर रहा है [मुन्नी बीबी बनाम त्रिलोकीनाथ] यद्यपि युक्तियुक्त आधार की वर्तमानता न पायी जाय तो भी वह पर्याप्त है।


एक मामले में जबकि वादी कुछ निश्चित मिलों को क्रय करने हेतु सहमत होता है ताकि यह दूसरों को न बेची जा सके और नगरीय वकाया राजस्व का भुगतान करता है यादी द्वारा किये गये भुगतान के संदर्भ में यह निर्धारित किया गया कि वह वापसी योग्य है क्योंकि उसका संभावित क्रेता के रूप में सम्पत्ति में हित है।


(c) आनुग्रहिक कार्य का फायदा उठाने वाले व्यक्ति की बाध्यता (Obligation of person enjoying benefits of non-gratuitous Act)


Section 70 (Indian Contract Act-1872)

धारा 70 के शब्दों में "जहाँ कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई बात या उसे किसी चीज की सुपुर्दगी की गयी आनुग्रहित करने का आशय न रखते हुए विधिपूर्वक करता है और ऐसा अन्य व्यक्ति उसका फायदा उठाता है, वहाँ वह पश्चात् कथित व्यक्ति उस पूर्व कथित व्यक्ति को ऐसे की गयी बात या परिदत्त चीज के बारे में हजाना देने या उसे प्रत्यावर्तित करने के लिये आबद्ध है।"


उपर्युक्त के अनुसार इस परिस्थिति में अग्र तीन परिणाम हैं:


(i) वादी ने कुछ विधिपूर्ण कार्य या भुगतान किया हो ।

(ii) ऐसा भुगतान आनुग्राहिक आशायित न हो।

(iii) अन्य व्यक्ति ने उसका फायदा उठाया हो ।


इसे एक मामले द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। जहाँ क' एक सरकारी सेवक हैं सरकार द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया जाता है। वह रिट याचिका उस आदेश के रोकथाम के लिये व्यादेश हेतु दाखिल करता है। उसे वापस रख लिया जाता है और वेतन दिया जाता है किन्तु कोई कार्य नहीं दिया जाता और सरकार कुछ समय बाद अपील करती है। अपील सरकार के पक्ष में निर्णित होती है और 'क' को निर्देशित किया जाता है कि वह पुनर्नियुक्ति के समय प्राप्त किये गये वेतन का प्रत्यावर्तन कर दे। [ श्याम लाल बनाम उ.प्र. राज्य ए. आई. आर. (1968) 130]


(d) माल पड़ा पाने वाले का दायित्व (Responsibility of finder of goods)

Section 71 (Indian Contract Act-1872)

धारा 71 के शब्दों में "वह व्यक्ति, जो किसी अन्य का माल पड़ा पाता है और उसे अपनी अभिरक्षा में रखता है, उसी उत्तरदायित्व के अध्यधीन होता है जिसके अध्यधीन निक्षेपी होता है।" 

अतः मालपड़ा पाने वाले को


(i) उस माल का सामान्य प्रज्ञासंम्पन्न व्यक्ति के भाँति उचित रख-रखाव करना होगा।

(ii) उस माल के उपयोजन का अधिकार नहीं है।

(iii) यदि मालिक का पता चल जाय तो माल वापस करना होगा।


जहाँ पर प' नामक ग्राहक 'द' के दुकान पर जाता है और अपना कोट उतार कर रख देता है, जाते समय पुनः उसे पहनना भूल जाता है। द का सहायक उसे पाता है और सप्ताहांत तक मेज की दराज में रख देता है। सोमवार उसे पता चलता है कि उसने वह कोट खो दिया है। द' के लिये यह निर्धारित किया गया कि सामान्य प्रज्ञा सम्पन्न व्यक्ति के तरह उसने सामान्य सावधानी नहीं अपनायी, अतः दायित्वाधीन था।


(e) उस व्यक्ति का दायित्व जिसको भूल या उत्पीड़न के अधीन धन का संदाय या किसी चीज की सुपुर्दगी की गयी हो (Liability for money paid or thing Delivered by Mistake or by Coercion)


Section 72 (Indian Contract Act-1872)

अधिनियम की धारा 72 के शब्दों में जिस व्यक्ति को भूल से या उत्पीड़न के अधीन धन संदत्त किया गया है या कोई चीज परिदत्त की गयी है, उसे उसका प्रतिसंदाय या वापसी करनी होगी।" प्रत्येक प्रकार के धन का भुगतान या माल का परिदान जो भूल के अन्तर्गत किया गया है, प्रतिसंदाय योग्य है। यहाँ यह तय करना आवश्यक नहीं है कि भूल तथ्य की है या विधि की [शिवप्रसाद बनाम शिरिश चन्द्र, ए. आई. आर 1949 पी.सी. 297]


भूल से नगरपालिकीय कर का भुगतान या गलतफहमी जो पट्टे की शर्तों से उत्पन्न हुई है. नगरपालिका प्राधिकारी से वापस कराया जाता। यह नियम उच्चतम न्यायालय ने सेल्स टैक्स ऑफिसर बनाम कन्हैया लाल के मामले में (ए.आई.आर 1959 एस.सी. 835 ) स्थापित किया।


इसी प्रकार यदि कोई धन उत्पीड़न के अन्तर्गत प्राप्त किया गया हो तो वह प्रतिसंदाय योग्य होता है उत्पीड़न शब्द का अर्थ अधिनियम की धारा 15 के तहत हो, यह आवश्यक नहीं है।


इस शब्द का अर्थ धमकी या उत्पीड़न या अन्य तरीके से है [सेठ खान्जेलेक बनाम नेशनल बैंक आफ इण्डिया ] ।


ऐसे मामलों में जहाँ टी ट्राम कार में बिना टिकट यात्रा कर रहा था। निरीक्षण के दौरान उसको ₹ 5 शास्ति के तौर पर संदेश किया गया। टी ने उस प्राधिकारी के खिलाफ प्रत्यावर्तन हेतु इस आधार पर दावा किया कि उसे लूटा गया है। बाढ़ का निर्णय उसके पक्ष में किया गया। [ट्रिकम दास बनाम बम्बई म्युनिसिपल कारपोरेशन (ए.आई. आर 1954] |


उपर्युक्त सभी मामलों में संविदात्मक दायित्व बिना पक्षकारों के बीच करार के उत्पन्न होता है।



 स्व परीक्षा प्रश्न
(SELF - EXAMINATION QUESTIONS)


1. संयोगिक संविदा के उदाहरण दें?



2. संयोगिक संविदा के प्रवर्तन हेतु क्या सिद्धान्त है?


3. जहाँ पर एक संविदा भविष्य की अनिश्चित घटना पर संयोगिक है, क्या घटना घटने के


4. पूर्व संविदा प्रवर्तननीय है? 'अ' 'ब' को ₹ एक लाख देने का वचन देता है यदि अगले दिन सूरज पश्चिम में उगे क्या 4.


5. यह संविदा वैध है? 'अ' कुछ धन या कोई चीज देने का वचन देता है यदि अनिश्चित घटना घटे या न घंटे एक करार है। कुछ करने या न करने की संविदा जो किसी घटना के घटने या न घटने के समपाश्विकता पर निर्भर है एक संविदा है। खाली जगह भरो? 


6. संविदा कल्प पक्षकारों के करार से उत्पन्न नहीं होता बल्कि विधि द्वारा आरोपित किया


जाता है क्या यह सत्य है? कैसे? यदि एक अक्षम व्यक्ति की आवश्यकताओं की आपूर्ति की जाती है तो उसकी सम्पति से 


7. उसका प्रतिसंदाय कराया जा सकता है?


8. क्या एक माल पड़ा पाने वाले उसे अपने उपयोग हेतु में ला सकता है।


9. संविदा अधिनियम की धारा 72 के तहत उस व्यक्ति के क्या दायित्व है जिसे किसी धन का संदाय किया गया है या कोई वस्तु परिदत्त की गयी है ?


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