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 12.1 प्रस्तावना


इसके पहली की इकाई में हम हॉब्स के समझौतावादी राजनीतिक विचारों का अध्ययन कर चुके है। आपने यह देखा कि हॉब्स के अनुसार राज्य किसी देवीय शक्ति से उत्पन्न न होकर के समजिक आपसी समझौते का परिणाम है। जिसे आत्मरक्षा के लिए बनाया गया है।


इस इकाई में हम समझौतावादी विचारक लॉक के राजनीतिक विचारों का अध्ययन करेंगे। जिससे स्पष्ट होगा कि लॉक भी राज्य को समझौते का परिणाम मानता है। साथ ही यह भी देखेंगे कि हॉब्स के विपरित लॉक ने मानव स्वभाव के सकारात्मक पक्षों पर बल दिया है।


12.3


जॉन लॉक के विचारों की पृष्ठभूमि


1642 ई0 में इंग्लैण्ड का गृह युद्ध इस कारण आरम्भ हुआ क्योंकि तत्कालीन राजा चार्ल्स प्रथम अपने शाही


अधिकारों पर ब्रिटिश ससंद के किसी भी प्रकार के अंकुश को स्वीकार करने के लिए तत्पर नहीं था। यह विवाद


राजा की शक्तियों और संसद की शक्तियों के बीच था। चार्ल्स प्रथम की हत्या, राजतंत्र का पतन, कॉमवेल की


अध्यक्षा में कामनवैल्थ की स्थापना, आलिवर कामवैल का निरंकुश गणतंत्रीय शासन कॉमवैल का पतन तथा


चार्ल्स द्वितीय को राजा बनाकर पुनः इंग्लैण्ड में राजतन्त्र की स्थापना, जेम्स द्वितीय को राजा बनाकर उसके विरूद्ध


पुनः जनाक्रोश और विद्रोह तथा राजा जेम्स द्वितीय को विस्थापित कर उसके स्थान पर आरेन्ज के प्रिंस विलियम


को इंग्लैण्ड की राजगद्दी पर बिठाया जाना, ये इन 47 वर्षो की प्रमुख घटनाएँ थी। 1688 ई० की रक्तहीन क्रांन्ति के


साथ प्रिंस विलियम को इंग्लैण्ड का राजा बनाएं जाने की घटना के साथ राजा निरंकुश शक्तियों का अन्त तथा


ससंद की शक्तियों का उदय हुआ। राजनीतिक चिन्तन के इतिहास के विधार्थियों के लिए याद रखने योग्य यह तथ्य है कि इस गृह युद्ध की घटनाओं में हॉब्स का झुकाव राजतन्त्र एवं निरंकुश शासनतन्त्र के पक्ष में था इसके विपरित, लॉक संसदीय दल के समर्थक के रूप में रक्तहीन क्रांन्ति का समर्थन करता है। 1688 ई० की रक्तहीन क्रांन्ति के जिन राजनीतिक दर्शन में आदर्शो की प्रस्थापना की थी। लॉक ने इन्ही आदर्शो का प्रतिपादन अपने राजनीतिक दर्शन में किया है। ऐसा लगता है। मानों लॉक रक्तहीन क्रांन्ति का समर्थन कर्ता दार्शनिक है। लॉक के राजनीतिक चिन्तन का सार यही है कि शासक की शक्तियाँ न्यास के समान है अतः शासन का कार्य समाज द्वारा सौपी हुई सत्ता रूपी धरोहर की रक्षा करना है।


12.4


लॉक के सहिण्णुता सम्बन्धी विचार


लॉक व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थक था। उसकी मान्यता थी कि राज्य अथवा किसी व्यक्ति/व्यक्ति समूह को दूसरे व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लॉक यह तर्क प्रस्तुत करता है कि मानवीय ज्ञान न तो जन्मजात और न ही यह ईश्वरीय रहस्योदघाटन है। मानवीय ज्ञान मनुष्य के विचारों की उपज है जन्म के समय मनुष्य का मस्तिष्क उस साफ सुधरी स्लेट के समान है जिस पर कुछ भी लिखा नहीं गया है। किन्तु अनुभव से उत्पन्न होने वाले विचारक था जो यह मानता था कि मनुष्य के विचार जन्मजात नहीं होते अनुभवों के साथ पेदा होते है। सत्ता को यह अधिकार कदापि नहीं हो सकता कि वह अपने विचारों को सही अथवा नैतिक दृष्टि से श्रेष्ठ मानकर दूसरों के ऊपर अपने विचारों को थोपे । सत्ता को सहिष्णु होकर दूसरों के विचारों का दमन नहीं करना चाहिए। लॉक के धार्मिक सहिष्णुता सम्बन्धी विचारों की पृष्ठिभूमि में ईसाई धर्म के विवाद थे जिनमें कुछ धार्मिक विचारकों ने यह प्रतिपादित किया था। कि जो व्यक्ति धर्म की आज्ञाओं का पालन नहीं करते, अथवा जो धर्म द्रोह का माप करते है, ऐसे व्यक्तियों को राज्य द्वारा दंडित किया जाना चाहिए। लॉक के अनुसार राज्य की शक्ति का उद्देश्य लौकिक शक्ति एवं सुव्यवस्था की स्थापना करना तथा सम्पत्ति की रक्षा करना, है न कि धर्म की स्थापना करना अथवा उसकी रक्षा करना राजा अपनी शक्ति को समाज के सदस्यों से प्राप्त करता है। इन विचारों से स्पष्ट होता है कि लॉक के धर्म सम्बन्धी विचार उदारवादी है। सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में सहिष्णुता के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के कारण लॉक को राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में उदारवादियों की अन्तिम पंक्ति में स्थान दिया जाता है।


12.5


लॉक का अनुभववाद


लॉक के विचारों का स्वरूप अनुभववादी है। वह ज्ञान का अनुभव जन्य मानता है। उसके ज्ञान सम्बन्धी विचारों का अध्ययन करने से यह तथ्य स्पष्ट होता है कि वह मनुष्य के ज्ञान को जन्मजात नहीं मानता उसकी यह मान्यता है कि मानवीय मस्तिष्क में कोई जन्मजात प्रयत्न नहीं होते। जन्म के समय मानवीय मस्तिष्क साफ होता है जिस पर कुछ भी अंकित नहीं होता। मनुष्य को ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त होता है। ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त अनुभव मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करता है जो उसमें चेतना एवं प्रतिबम्ब पैदा करतें है। मस्तिष्क में उनके विश्लेषण की तुलना करने की तथा उनको एकीकृत करने की प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में विचारों की उत्पत्ति होती है। संक्षेप में लॉक के मतानुसार मनुष्य के विचारों का जन्म अनुभवों से होता है। विचारों को ज्ञान नहीं कहा जा सकता हाँ ये ज्ञान के साधन अवश्य है। ज्ञान का जन्म तब होता है जब मस्तिष्क द्वारा अनेक विचारों की तुलना करके सहमति अथवा इसके विपरित असहमति व्यक्त की जाती है। ज्ञान को अनुभव जन्म मानने के कारण लॉक को एक अनुभववादी विचारक माना जाता है।


12.6


मनुष्य स्वभाव सम्बन्धी लॉक के विचार


हॉक्स के अनुसार मनुष्य प्रकृति से ही स्वार्थी, झगड़ालू और आसामाजिक प्राणी है। किन्तु लॉक की मनुष्य स्वभाव सम्बन्धी मान्यताएँ हॉक्स से सर्वथा भिन्न है वह मानता है कि मनुष्य में स्वाभाविक अच्छाई होती है। प्रकृति ने मनुष्य को एक महान गुण से विभूषित किया है और वह गुण है मनुष्य की विवेकशीलता मनुष्य में सहयोगी भवना होती है, वह सामाजिक प्राणी है। प्रकृति ने ही मनुष्य को शक्ति-प्रिय, नीति नियमों का आस्थावान तथा एकता और अच्छाई की चाह करने वाला प्राणी बनाया है। इसके अतिरिक्त, प्रकृति से ही मनुष्यों में समानता होती है। प्राकृतिक अवस्था समानता की अवस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की शक्ति एवं उसका क्षेत्राधिकार पारस्परिक होता है। तथा जिसमें किसी के पास दूसरे से अधिक शक्ति नहीं है। लॉक के मतानुसार मनुष्य की समानता शारीरिक अथवा मानसिक समानता नहीं है। अपितु वह नैतिक दृष्टि से दूसरे के समान होता है। मनुष्य स्वभाव सम्बन्धी लॉक के ये विचार उसके राजनीतिक विचारों के मूल में अवास्थित है।


12.7


प्राकृतिक अवस्था का चित्रण


हमें ज्ञात है कि हॉब्स ने प्राकृतिक अवस्था को एकाकी, दीन हीन कुत्सित, जंगली एवं क्षणिक बताया है। इसके विपरित लॉक ने प्राकृतिक अवस्था को शान्ति सदभावना, पारस्परिक सहायता और संरक्षण की अवस्था बताया है। सामाजिकता मनुष्य का वह मूल गुण है जिसके कारण वह प्राकृतिक अवस्था में अन्य सदस्यों के साथ रहता है। एवं सहयोग करता था। प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य में भ्रातृत्व भवना एवं न्याय की भवना थी। उस अवस्था में मनुष्य निश्छल था और इसीलिए सुखी था । प्राकृति ने उन्हें समानता और स्वतन्त्रता का आशीर्वाद प्रदान किया था। अतः कोई किसी की मर्जी पर निर्भर नहीं करता था। मनुष्य अपने जीवन का यापन एवं अपनी धन सम्पत्ति का उपयोग स्वेच्छानुसार करता था। मनुष्य में मैत्री न्याय और सदभावना के गुण थे। लॉक का कथन है कि "प्राकृतिक अवस्था को शासित करने वाला एक प्राकृतिक कानून है और उस कानून को हम विवेक कहते है।


प्राकृतिक अवस्था का चित्रण करते हुए लॉक बताता है कि उस अवस्था में मनुष्य को कुछ नैसर्गिक अधिकार प्राप्त थे। लॉक की नैसर्गिक अधिकारों की धारणा का आशय यह है कि इन अधिकारों का निर्माता अथवा दाता राज्य

नहीं है। यह अधिकार नैसर्गिक है। प्रकृति ने ही मनुष्य को कुछ जन्मजात अधिकार प्रदान किये है। प्राकृतिक अधिकारों की धारणा को प्रस्तुत करने में लॉक का स्पष्ट मन्तव्य यह स्थापित करना है कि राज्य उत्पत्ति के पूर्व भी व्यक्तियों के अधिकार नैसर्गिक एवं राज्य से पूर्व है अतः राज्य की सत्ता इन अधिकारों का अपहरण नहीं कर सकता। लॉक के राजदर्शन की यह मूल मान्यता है कि राज्य की स्थापना व्यक्ति सिर्फ इसलिए करते है जिससे कि राज्य उनके अधिकारों की रक्षा करे।


लॉक के अनुसार इस अवस्था में प्राकृतिक विधि का शासन था जिसकी छत्रछाया में विवेक और समानता स्थापित थी तथा जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने प्राकृतिक अधिकारों का स्वामी था। वह यह भी स्वीकार करता है कि दूसरे व्यक्ति के भी ऐसे ही प्राकृतिक अधिकार थे जिनका सम्मान किया जाता था। अतः प्राकृतिक अधिकार थे जिनका सम्मान किया जाता था अतः प्राकृतिक अवस्था में स्वतन्त्रता थी, स्वच्छन्दता नहीं।


यदि प्राकृति अवस्था इतनी अच्छी थी तब प्रश्न का उठना स्वाभाविक है कि उस अवस्था में रहने वाले लोगों ने उसे छोड़ कर राज्य की स्थापना क्यों की ? लॉक ने इसका उत्तर दिया है कि प्राकृतिक अवस्था में प्रत्येक मनुष्य प्राकृतिक नियम की अपने हित के अनुसार व्याख्या करता था जिसके परिणाम स्वरूप प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार था कि वह व्यवस्था अथवा कानून का उल्लंघन करने वालों को दंडित कर सके। प्राकृतिक अवस्था में दो व्यक्तियों के महत्व विवादों का निपटारा वह व्यक्ति स्वयं अपनी धारणानुसार कर लेता था, जबकि सही न्यायपूर्ण अवस्था में ऐसे विवादों का निपटारा तीसरी निष्पक्ष न्यायिक सत्ता के द्वारा किया जाना आवश्यक है। किन्तु प्राकृतिक अवस्था में तीसरी निष्पक्ष सत्ता का अभाव था। लॉक के विचारानुसार प्राकृतिक अवस्था में तीन प्रमुख असुविधाएँ थी।


1. प्राकृतिक अवस्था में प्राकृतिक विधि की कोई स्पष्ट परिभषा नहीं थी, अतः प्रत्येक व्यक्ति अपने मन के अनुकूल कानून को परिभाषित करता था।


2. प्राकृतिक विधि की स्पष्ट परिभाषा करने वाले किसी निष्पक्ष न्यायधीश का अभाव था।


3. ऐसी सत्ता का अभाव था जो प्रभावशाली रुप से उस विधि को लागू कर सके। क्योंकि प्राकृतिक कानून के क्रियान्वयन का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति में निहित था इसके परिणामस्वरुप प्रत्येक व्यक्ति अपने विवाद का स्वयं ही न्यायकर्ता बन जाता है। जिससे समाज का सहयोग टुटता है।


12. 8 लॉक का सामाजिक संविदा का सिद्धान्त


सामाजिक संविदा :- प्राकृतिक अवस्था की असुविधाओं से मुक्ति पाने का मार्ग सामाजिक संविदा द्वारा प्राप्त होता है। लॉक के शब्दों में प्राकृतिक अवस्था को त्यागने के लिए मनुष्यों ने स्वेच्छा से समझौता किया जिससे कि वे एक समाज में सम्मिलित हो और संगठित हों ताकि उनका जीवन सुखी सुरक्षित और शान्तिपूर्ण हो जहाँ वे अपनी सम्पत्तियों का सुरक्षित रूप से आनन्द ले सकें।


लॉक द्वारा प्रतिपादित सामाजिक संविदा के स्वरुप के बारे में विचारकों के भिन्न -2 मत है। कुछ लेखक मानते है कि समाज और शासक के बीच एक ही समझौता हुआ जिससे राजनीतिक समाज अर्थात राज्य की स्थापना की गयी। इसके विपरित कुछ लेखकों कर मत है कि लॉक ने दो स्तर पर समझौतों के होने की कल्पना है। इनके

मतानुसार पहला समझौता सामाजिक था जो प्राकृतिक अवस्था में रहने वाले मनुष्य के बीच पारस्परिक स्तर पर हुआ था जिसके परिणामस्वरूप समाज की स्थापना हुई। लॉक के कथनानुसार मूल संविदा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक कानून की स्वंय दंड देने के प्राकृतिक अधिकार का परित्याग करके ऐसा अधिकार सम्पूर्ण समाज को प्रदान करता है। दूसरा समझौता राजनीतिक था जो समाज और शासक के बीच हुआ जिसके द्वारा सिविल शासन की स्थापना की गई। लॉक के लेखन में यह पूर्णतः स्पष्ट नहीं है कि उसने एक या दो समझौतो की कल्पना की है। किन्तु उसने मूल समझौता शब्दों का प्रयोग किया है जिससे यह संकेत मिलता है कि इसके अलावा भी कोई दूसरा समझौता हुआ हो। मूल संविदा के द्वारा प्राकृतिक अवस्था के लोग समाज की स्थापना करते है। दूसरा समझौता समाज के सदस्यों तथा शासक के बीच होता है। जिससे राज्य जैसी संस्था की स्थापना होती है। पहले समझौते के द्वारा व्यक्ति यह निर्धारित करते हैं कि वे अपवने सम्बन्ध में व्यवस्था करने का अधिकार समाज को प्रदान करते है। इस प्रकार समझौता कर लेने के बाद समाज के व्यक्ति शासक के साथ समझौता कर उसे शासन करने का अधिकार कुछ शर्तों के साथ प्रदान करते हैं। शासक का समझौते द्वारा निर्धारित यह कर्तव्य है कि वह नागरिकों के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करेगा। यदि शासक संविदा की शर्तों का उल्लंघन करे अथवा सार्वजनिक हित के विरूद्ध शासन करे तब समाज को यह अधिकार होगा कि उल्लंघनकर्ता को अपदस्थ कर उसके स्थान पर नये शासन को स्थापित करे।


12.9 हॉब्स लॉक एक तुलनात्मक अध्ययन


संविदा द्वारा शासन के निमार्ण की लॉक की धारणा हॉब्स के विचारों से ठीक विपरित है। हॉब्स के मतानुसार सम्प्रभु शासक संविदा से बधा हुआ नहीं अपितु उसके बाहर एवं ऊपर है जिसके परिणाम स्वरूप राजनीतिक सत्ता का स्वरूप निरंकुश हो जाता तथा जिसका कभी प्रतिरोध नहीं किया जा सकता है। इसके विपरित लॉक शासक को संविदा की शर्तों से प्रतिबंधित मानता है इस प्रकार लॉक सीमित शासन तन्त्र का समर्थन करता है। लॉक प्रजा को यह अधिकार देता है कि वह शासक का प्रतिरोध करे यदि शासक प्रजा के नैसर्गिक अधिकारों का अपहरण करने की कुचेष्टा करता है। हॉब्स का मत है कि प्रजा द्वारा संविदा के माध्यम से अपने समस्त प्राकृतिक अधिकारों को केवल आत्म संरक्षण के अधिकार को अपने पास रखते हुए सम्प्रभु को समर्पित कर दिया जाता है। तत्पश्चात नागरिकों के केवल वे ही अधिकार रहते है जिन्हें सम्प्रभु द्वारा प्रदान किया जाता है। इसके विपरित लॉक के मतानुसार नागरिक द्वारा राजसत्ता को केवल एक अधिकार सौंपा जाता है और वह अधिकार है, प्राकृतिक कानून को स्वाहितानुसार लागू करने का अधिकार। ऐसी धारणाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि हॉब्स की संविदा की धारणा निरंकुशवाद का और लॉक की धारणा व्यक्तिवाद का समर्थन करती है।


12.10 लॉक के शासन सम्बन्धी विचार


लॉक का कथन है कि शासन संविदा द्वारा निर्मित संस्था है लेकिन शासन का क्या स्वरूप है एवं उसके कार्य - कलाप क्या है, उसके कार्य कलापों की क्या सीमाएँ है। लॉक के मतानुसार सरकार के कार्य मर्यादित होते है। सरकार की स्थापना करने में लॉक समुदाय और सरकार के बीच एक न्यायधारी न्यास के द्वारा सरकार की स्थापना की जाती है। सरकार को न्यासी बताकर लॉक यह प्रतिपादित करना चाहता है कि समाज ने समूचे समाज की शक्ति को धरोहर के रूप में सरकार को सौपा है। अतः सरकार का यह वैधिक दायित्व है कि वह उस धरोहर की रक्षा एक न्यासी के रुप में करे। यदि सरकार इस दायित्व का निर्वाह नहीं करे, अर्थात नागरिकों के जीवन स्वतन्त्रता और

सम्पत्ति के अधिकारों की रक्षा नहीं करे अथवा उनका अपहरण करे, तब समुदाय को यह अधिकार है कि उस धरोहर की अनचाही सरकार से पुनः अपने हाथों में लेकर उसे दूसरी सरकार को सौंप दे जो अधिकारों को सुरक्षित रख सके। लॉक यह सिद्ध करने का प्रयास करता है कि सरकार की शक्तियाँ समाज कह शक्ति की अपेक्षा सीमित है सरकार स्वहित के लिए नही अपितु समाज के हितों की रक्षा के लिए स्थापित की जाती है, तथा सरकार पर समाज का नियंत्रण सदा बना रहता है। सामाजिक हित का भाव वह अंकुश है जो शासन पर सदा लगा रहता है। लॉक की मान्यता है कि सरकार समुदाय के हितों की रक्षा के लिए समुदाय के प्रति उत्तरदायी है किन्तु समुदाय का सरकार के प्रति ऐसा कोई दायित्व नहीं होता। सरकार के स्वरूप में सम्बन्ध में लॉक की यही धारणा है कि सरकार समाज की धरोहर की रक्षा एक न्यासी के रुप में करती है। सरकार द्वारा इस धरोहर को हड़पने पर अथवा वचन भंग करने पर उसे अपदस्थ कर नये न्यासी की नियुक्ति का अधिकार सदा समुदाय के हाथों में रहता है।


12.11


सरकार के कार्य


लॉक का कथन है कि जिस महान एवं प्रमुख उद्देश्य से प्रेरित होकर मनुष्य अपने आपकों शासनाधीन करते है, एवं राज्य के रूप में संगठित करते है, वह उद्देश्य है, अपनी सम्पत्ति का संरक्षण सम्पत्ति शब्द से उसका तात्पर्य जीवन, स्वास्थ, स्वतन्त्रता और सम्पदा के अधिकारों की रक्षा करना है। आखिर ये ही वे प्राकृतिक अधिकार है जिनका उपभोग व्यक्ति प्राकृतिक अवस्था में करता था किन्तु इन अधिकारों की समुचित व्याख्या तथा उनका समुचि क्रियान्वयन करने वाली संस्था के अभाव में ये अधिकार असुरिक्षत थे। सरकार की स्थापना इसी उद्देश्य से की जाती है कि ऐसे प्राकृतिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुरक्षित एवं स्थायी रहें। अतः सरकार का यह प्रथम कार्य हो जाता है। कि ऐसे सामान्य मापदण्डों की स्थापना करे जिसके द्वारा उचित अनुचित तथा न्यायपूर्ण अन्यायपूर्ण का बोध हो सके।


सरकार का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य ऐसी निष्पक्ष सत्ता का प्रावधान करना है जो व्यक्तियों के बीच के विवादों का स्थापित कानून के आधार पर निपटारा कर सके। आधुनिक भाषा में हम इसे सरकार के न्यायिक कार्य कह सकते है।


लॉक के अनुसार सरकार का तीसरा प्रमुख कार्य फैडरेटिव हैं। जिस कार्य करे आज हम सरकार के कार्यकारिणी कार्य कहते है। लॉक ने इन्ही कार्यों को फैडरेटिव कृत्य कहा है। लॉक के अनुसार सरकार के फैडरेटिव कार्य इस प्रकार है अपराधों को रोकना, समुदाय के हितों की रक्षा करना, नागरिकों के बीच के सम्बन्धों को नियमित करना युद्ध और शान्ति का संचालन करना तथा अन्य राज्यों से संधिया इत्यादि करना है। इस प्रकार लॉक सरकार के कार्यो को तीन भागों में बाँटता है विधायिनी, न्यायिक एवं कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य ।


लॉक की ऐसी मान्यता है कि विधायी एवं कार्यकारिणी शक्तियों को सदैव पृथक रखा जाना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति कानून बनाते है उन्हीं व्यक्तियों के हाथों में उन कानूनों को लागू करने की शक्ति प्रदान नहीं की जानी चाहिए। इस प्रकार हम देखते है कि लॉक शक्ति पृथक्करणके सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हुए दिखायी पड़ते है। लॉक कहते है विधायनी एवं कार्यकारिणी शक्तियाँ पृथक होनी चाहिए एक ही संस्था में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार लॉक न्यायिक शक्तियों को भी विधायनी एवं कार्यकारिणी की शक्तियों से पृथक पृथक होनी चाहिए एक ही संस्था में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार लॉक न्यायिक शक्तियों को भी विधायनी एवं


कार्यकारिणी की शक्तियों से पृथक करने का पक्षधर है। विधि की व्याख्या करने का कार्य स्वतन्त्र न्यायपालिका का है हम देखते है कि लॉक के इन विचारों में शक्ति पृथक्करण के तत्व निहित है।


12.12 व्यक्तिवाद


लॉक के विषय में यह कहा जाता है कि लॉक की पद्धति में प्रत्येक वस्तु वयक्ति के चारों ओर घूमती है, प्रत्येक वस्तु को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि व्यक्ति की सर्वोच्च सत्ता सब प्रकार से सुरक्षित रहे। व्यक्तिवाद लॉक के राजनैतिक विचारों का आधार है। उसके राजदर्शन में व्यक्ति परमसाध्य है और राज्य और समाज दोनों उसके अधिकारों को बनाये रखने के साधन है। जहाँ कहीं राज्य व्यक्ति के अधिकार में किसी प्रकार से बाधक होता है वहाँ उस पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। इस प्रकार शासक जनता का प्रतिनिधि मात्र है। व्यक्ति समाज अथवा राज्य का किसी भी प्रकार का ऋणी नहीं है। इस वाक्य में लॉक का व्यक्तिवाद की परमसीमा दिखलाई पड़ती है।


लॉक राज्य को व्यक्ति के अधिकारों का संरक्षक तथा जनसेवा का माध्यम मानकर व्यक्ति को राज्य व्यवस्था का केन्द्र बिन्दु बना देता है। व्यक्ति के नैसर्गिक अधिकारों का संरक्षण करना, यही राज्य का दायित्व है। उसके विचारों में राज्य केन्द्रीय नहीं है, उसके दर्शन का केन्द्र बिन्द व्यक्ति है यही लॉक का व्यक्तिवाद है। लॉक के दर्शन में व्यक्ति के लिए समूची राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण किया गया है। व्यक्ति के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा के लिए राज्य की स्थापना करना, व्यक्ति के अधिकारों का शासक द्वारा अपहरण करने पर ऐसे शासन को अपदस्थ करना व्यक्ति की सहमति को राज्य का आधार मानना इत्यादि ऐसे विचार है जिनका प्रतिपादन करने के कारण लॉक को व्यक्तिवादी दर्शन का प्रणेता माना जाता है। अरस्तु यह कहना उचित नहीं है कि लॉक पूर्णतया और असीम रुप से व्यक्तिवादी था। इस सम्बन्ध में बोदाँ का जो कथन पीछे दिया गया है वह एकांगी सत्य है।


12.13


सम्पत्ति का अधिकार


लॉक व्यक्ति के निजी सम्पत्ति के अधिकार का प्रबल समर्थक है। उसके अनुसार व्यक्ति का सम्पत्ति का अधिकार प्रकृति प्रदत्त है। लॉक का मत है कि मनुष्य संविदा द्वारा सिविल समाज की रचना अथवा सरकार की स्थापना मात्र इसी उद्देश्य से करते है कि सरकार उनकी सम्पत्ति के अधिकार की रक्षा करे।


लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में प्राकृति की वस्तुओं पर सभी का समान अधिकार था। तब भी किसी एक व्यक्ति का प्राकृतिक सम्पदा पर एकाधिकार नहीं था। जिस एक चीज पर उसको प्रकृति ने एकाधिकार प्रदान किया था, वह उसका स्वयं का निजी व्यक्तित्व किन्तु जब व्यक्ति ने अपने परिश्रम को प्रकृति की किसी वस्तु को संजोया संभाला अर्थात प्रकृति की सम्पदा के साथ अपने परिश्रम को मिश्रित किया तब वह वस्तु उस व्यक्ति की निजी सम्पत्ति बन गयी। लॉक का मत है कि सम्पत्ति का अधिकार किसी समझौते का परिणाम नहीं है क्योंकि व्यक्ति अपने जन्म के साथ साथ ही इसे प्रकृति से प्राप्त कर समाज में अवरित होता है। राज्य अथवा समाज ने इस अधिकार का निर्माण नहीं किया है। अतः सरकार अथवा समाज को किसी व्यक्ति से सम्पत्ति को छीनने का अधिकार भी नहीं है। लॉक के मान्यतानुसार सम्पत्ति व्यक्ति कर अनुलंघनीय अधिकार है।


लॉक के प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का, विशेषतः सम्पत्ति के अधिकार का राजनीतिक चिन्तन को महत्वपूर्ण योगदान है। इस सिद्धान्त द्वारा लॉक ने यह प्रतिपादित किया था कि शासन प्राकृतिक अधिकारों से मर्यादित रहता

है तथा राज्य का दायित्व है कि वह व्यक्ति के जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति की रक्षा करे। इस अधिकार का समर्थन करके लॉक ने व्यक्तिवादी दर्शन की प्राण प्रतिष्ठा की। राजकीय हस्तक्षेप के सिद्धान्त ने लॉक के सरकार सम्बन्धी विचारों से गहरी प्रेरणा प्राप्त की है। दूसरी और लॉक के सम्पत्ति के सिद्धान्त की धारणा ने एडम स्मिथ तथा समाजवादी दर्शन के मूल्य सिद्धान्त को भी प्रभावित किया।


12.14


लॉक के विचारों की आलोचना


लॉक की सीमित राजतंत्र के उपरोक्त सिद्धान्तों के विरूद्ध निम्नलिखित तर्क उपस्थित किये गये है।


1. लॉक के सिद्धान्त में प्रभुता राज्य में नहीं बल्कि व्यक्ति में रहती जान पड़ती है। प्रभुशक्ति के अभाव में राज्य की विशेषता नष्ट हो जाती है।


2. लॉक राज्य को विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनी हुई एक लिमिटेड कम्पनी का रूप देता है राज्य के स्वरुप की उसकी कल्पना यथार्थ नहीं है।


3. प्राकृतिक दशा में मानव समाज का लॉक द्वारा खीचा गया चित्र अच्छा होने पर भी वास्तविकता से दूर है। जब प्रकृति में राज्य में मनुष्य को कोई कठिनाई नहीं थी तो केवल कानून की व्याख्या और उसे लागू करने के लिए राज्य की उत्पत्ति की कल्पना राज्य का पर्याप्त कारण नहीं है।


4. अनेक विचारक लॉक के सिद्धान्तों में कोई मौलिकता नहीं मानते। सामाजिक संविदा, प्राकृतिक नियम, प्राकृतिक अधिकार और क्रांन्ति के अधिकार आदि के विषय में लॉक के सिद्धान्त उसके पहले से चले आते हुए विचारों पर आधारित है।


लॉक का योगदान


पाश्चात्य राजशास्त्र के इतिहास मं लॉक का स्थान महत्वपूर्ण है। उसके शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धान्त को आगे


चलकर मान्टेस्क्यू ने विकसित किया। उसके सिद्धान्तों के आधार पर रुसो ने लोकप्रिय प्रभुता का सिद्धान्त बनाया।


उसके सिद्धान्त अधिक व्यवहारिक थे। उसका यह कहना आज भी सब कही मान्य है कि शासन जनता की इच्छा


पर आधारित है । उसका लोकप्रिय प्रभुता का सिद्धान्त आधुनिक जनतंगीय राज्य का आधार है। उसकी निरपेक्ष


राज्य की कल्पना अधिकतर आधुनिक राज्यों में साकार हुई है। प्राकृतिक अधिकारों के विषय में उसका सिद्धानत


आधुनिक राज्यों में नागरिक के मौलिक अधिकारों का आधार है।



उक्त इकाई के अध्ययन से यह आप समझ गये होगें कि किसी भी राजनीतिक विचारक के राजनीतिक चिंतन पर उसके समय की परिस्थितियां प्रभावित करती है। आप ने देखा कि जहाँ हॉब्स मानव स्वभाव का बुरा चित्रण करता है वही लॉक मानव के स्वभाव के उदान्त और सकारात्मक पक्षों पर बल देता है। ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि लॉक ने इंग्लैण्ड के गौरपूर्ण क्रांन्ति को देखा कि किस प्रकार बड़ज्ञ परिवर्तन भी शांतिपूर्ण तरीके से हो सकता है। साथ ही लॉक ने प्राकृतिक अवस्था में भी जीवन स्वतन्त्रता और सम्पत्ति के अधिकारों को स्वीकार कर व्यक्ति को गौरवपूर्ण स्थान प्रदान किया है और राज्य के उत्पत्ति के प्रमुख कारण के रुप में इन अधिकारों की रक्षा को माना यदि कोई सरकार इन अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाती है तो उसे अपदस्थ करने का अधिकार जनता को देता है। ऐसा करके वह प्रतिनिधि सरकार का समर्थन करता है । सम्पत्ति के अधिकार को मान्यता देकर वह तत्कालीन समय में उभरते हुए पूंजीवाद को समर्थन प्रदान करने का कार्य किया स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए शासन के अंगो में शक्तियों के पृथक्करण की बात कर वह मैकियावली का पूर्व संकेत देता है।

अभ्यास प्रश्न-


1. 'ए लैटर ऑन टॉलरेशन' नामक ग्रन्थ के लेखक कौन है ?


2. इंग्लैण्ड की रक्तहीन क्रांन्ति कब हुई ?


3. लॉक व्यक्ति के.


• अधिकार का प्रबल समर्थक है 4. लॉक को आधुनिक काल में


5. 'टू ट्रीटाइजेज ऑफ गर्वनमेंट' की रचना किसने की।


..का प्रतिपादक माना जाता है।




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