Definition of transfer of property & what may be transferred// संपत्ति के हस्तांतरण की परिभाषा और क्या हस्तांतरित किया जा सकता है// TPA - 1882

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 संपत्ति के अन्तरण से संबंधित सामान्य प्रावधान संपत्ति अन्तरण अधिनियम के अध्याये 2 में दिए गए हैं।


इस अध्याय को दो भागों में बांट सकते हैं:-


1. अचल व चल संपत्ति से संबंधित प्रावधान (धारा 5-37)


2. अचल संपत्ति से सपेति प्रावधान (धारा 38 53क)


ये प्रावधान आधारभूत प्रकृति के हैं जैसे:-


संपत्ति का अन्तरण क्या है धारा 5


किन संपत्तियों का अन्तरण किया जा सकता है प्रास 6


क्या अन्य व्यक्ति को संपत्ति अन्तरित करते समय उस पर 

कोई प्रतिबंध लगाया जा सकता है द्वारा: (10, 11)


अजात शिशु के पक्ष में अन्तरण किया जा सकता है धारा

सशर्त अन्तरण धारा 25


निर्वाचन का सिद्धांत घास 35 आदि सामान्य प्रकृति के सिद्धांत हैं जो चल व अचल दोनों प्रकार की संपत्तियों पर लागू होते हैं।


परिभाषा


'संपत्ति का अन्तरण क्या है? विक्रये व विनियम मै अन्तर क्या है? (100 words, RJS 1976)


'संपत्ति का अन्तरण':


संपत्ति अतिरण की परिभाषा संपत्ति अन्त्रण अधिनियम की धारा 5 में दी गई है।

 

इस परिभाषा केअनुसार किसी जीवित व्यक्ति द्वारा एक या अन्य जीवित व्यक्तियों (या स्वयं) को वर्तमान या भविष्य में संपत्ति का अन्तरण किया जाना 'संपत्ति का अन्तरण' कहलाता है।


जीवित व्यक्तियों में निगमित या अनिगमित व्यक्तियों का समूह भी शामिल है।


निगमित से अभिप्राय कंपनी


अनिगमित से अभिप्राय फर्म या संयुक्त हिन्दू परिवार से


 इस परिभाषी का विश्लेषण करने से स्पष्ट है कि इसके आवश्यक तत्व निम्नलिखित हैं


यह एक कार्य है


जीवित व्यक्ति


हस्तान्तरण


वर्तमान या भविष्य

संपत्ति

दूसरे जीवित व्यक्ति या स्वयं को


क्या अन्तरित किया जा सकता है धारा 6


रूपरेखा:


1. परिचय


2. संपत्तियां जिनका अन्तरण नहीं किया जा सकता


(a) संभाव्य उत्तराधिकार [Section 6 (a)]


(b) पुनः प्रवेश का अधिकार [Section 6 (b)


(c) सुसाधिकार [Section 6 (c)]


(d) प्रतिबंधित हित [Section 6 (d)]


(e) भरण पोषण [Section 6 (dd)]


(


1) वाद लाने का अधिकार [Section 6 (e)


9) लोक पद [Section 6 (1))


( (h) पेन्शन [Section 8 (9))


① हित के विरुद्ध अन्तरण [Section(h)


(1) अहस्तान्तरणीय हित [Section 6 (i))


. निष्कर्ष (उपसंहार) 


। परिचय


सामान्य नियम यह है कि प्रत्येक प्रकार की संपत्ति चाहे वह चल या अचल, मूर्त या अमूर्त हो, अन्तरित की जा सकती है। यदि किसी अधिनियम के द्वारा उसके अन्तरण पर रोक लगाई गई है तो वह अन्तरणीय नहीं रहेगी।


2. संपतियां जिनका अन्तरण नहीं किया जा सकते:


संपत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 6 के अनुसार निम्नलिखित संपत्तियों के अन्तरण पर रोक लगाई गई है-


(a) सम्भाव्य उत्तराधिकार [Section 16 (a)]


इस उप्यास में तीन प्रकार की संपत्तियों को अहस्तान्तरणीय बताया है :-


1. प्रत्यक्ष वारिस द्वारा उत्तराधिकार में संपदा प्राप्त करने की संभावना


3. इसी प्रकृक्ति की कोई अन्गे संभावना ।


यह प्रतिबंध लोक नीति के आधार पर लगाया जाता है मात्र संभावना को अन्तरणीय बनाये जाने परां.


2. कुल्टी की मृत्यु पर किसी नातेदार की वसीयत संपदा प्राप्त करने की संभावना


संभाव्य उत्तराधिकारी अपनी संपत्ति को अन्तोरण करने लगेंगे परन्तु उत्तराधिकार में प्राप्त होने वाली संपत्ति में परिवर्तन हो सकता है जिससे अनिश्चितता को बढ़ावा मिलेगा और दावों की संख्या भी अत्यधिक बढ़ जायेगी। ! हिन्दू और मुस्लिम दोनों विधियों में इसके अन्तरण की अनुमति प्रदान नहीं की गई है। पतिवर्ती। (Reversionary) को प्राचीन हिन्दू विधि में विधवा के जीवन पर्यनत हित को तब तक अन्तरण करने का अधिकार नहीं था जब तक विधवा की मृत्यु न हो जाये। (अमृत नारायण बनाम गया सिंह 1918 Cal 


उदाहरण: 'A' की मृत्यु हो जाती है तथा उसकी वारिस विधवा 'B' तथा प्रतिवर्ती वारिस 'C' जीवित. है। B' एक प्राधिकार पत्र के द्वारा एक पुत्र को गोद लेना चाहती है। परन्तु 'C' उसका विरोध करता है. तथा वाद लाने के लिए अपना हित 'D' को बेच देता है। 'C' वाद जीत जाता है। ' की मृत्यु के उपरांत ''! तथा 'D' दोनों संपत्ति पर अपना-अपना दावा प्रस्तुत करते हैं। यहां 'D' को संपत्ति प्राप्त नहीं होगी क्योंकि 'C' को संभाव्यं उत्तराधिकार को अन्तरण का अधिकार नहीं था। क्योंकि अन्तरण शून्ये था परन्तु 'D' संपत्ति: 1 | अन्तरण अधिनियम, 1882 धारा 43 तथा I.C.A., 1872 धारा 6.5 तथा 1.E.A. 1872 घारा 115 का लाभ। प्राप्त कर सकता है।


शमशुद्दीन बनाम अब्दुल हुसैन (1906) Bombay तथ्य 'A' की एक पत्नी 'B' तथा बेटी 'C' थी।'' ने 1000/- का प्रतिफल 'A' से प्राप्त करके 'A': की संपत्ति में अपने हिस्से के अधिकार का निर्मोचन कर दिया 'A' की मृत्यु के उपरांत उसकी संपत्ति में से। अपने हिस्से की मांग करती है। उसके दावे का प्रतिवाद करके यह कहती है कि उसके द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेज के कारण उसका अधिकार समाप्त हो गया है।


1 निर्णय वाद. 'C' के पक्ष में निर्णीत किया गया क्योंकि 'C' द्वारा अन्तस्ति किया गया हित मात्र, संभाव्य । उत्तराधिकार था तथा अन्तरण शून्य था। वसीयत के अन्तर्गत भी उत्तराधिकार प्राप्त होने की संभावना दूरस्थ है क्योंकि वसीयत को अनेक बार


I change किया जा सकता है।


इस प्रकार की अन्य संभावनायें जैसे लॉटरी जीतने पर प्राप्त होते वाली संपदा को अन्तरित का अधिकार


शून्य क्योंकि लॉटरी जीती नहीं गई है।


भविष्य में प्राप्त होने वाले चढ़ावों को भी अन्तरित नहीं किया जा सकता है। (पुनेहा ठाकुर बनाम बिन्दे !


श्री., कलकत्ता)


(b) पुनः प्रवेश का अधिकार्य [Section 6 (5)]:


1 किसी पश्चात्वर्ती शर्त के भंग होने पर पुनः प्रवेश को अधिकार मात्र उस संपत्ति के स्वामी को अन्तरित


किया जा सकता है किसी अन्य को नहीं


जैसे इस प्रकार की शर्त का त्याग करने पर उसके स्वामी को इसका अन्तरण मान लिया जायेगा। पुनः प्रवेश का अधिकार संपत्ति के साथ अन्तरित किया जा सकता है। इस प्रकार के पुनः प्रवेश के अधिकार को सामान्यतः प‌ट्टा विलेख में उपबंधित किया जाता है।


(c) सुखाधिकार [Section 6 (c)]:


कोई सुखाधिकार अधिष्ठायी स्थल (Dominant heritage) के अन्तरण के साथ स्वतः ही अन्तरित हो जाता है। इसके अलग से अन्तरित नहीं किया जा सकता है।


(d) प्रतिबंधित हित [Section 6 (d)]:


संपत्ति में ऐसा हित जो उपयो में स्वयं स्वामी तक ही निर्बन्धित है उसके द्वारा अन्तरित नहीं किया जा


सकता है। इस प्रकार के प्रतिबंधित हित के अनेके उदाहरण हो सकते हैं। जैसे भरण पोषण का अधिकार ! पूर्वाक्रयाधिकार (Pre-emption Right), किसी आदि । व्यक्ति को व्यक्तिगत उपयोग के लिए अन्तरित की गई संपत्ति


कुछ धार्मिक पद जैसे वक्फ के मुतावल्ली का पद या किसी मठ के महन्त का पद आदि इसके उदाहरण: ।


हैं एक न्यासी भी अपना पेद किसी अन्य व्यक्त्ति को अन्तरित नहीं कर सकता क्योंकि यह व्यक्तिगत विश्वास


पर आधारित होता है।


: (e) भरण पोषण [Section 6 (dd)]:


भावी भरण पोषण का अधिकार चाहे वह किसी भी रीति से उद्भूत (arise), प्रतिभूत (secured) अवधारित (determined) हो, को अन्तरित नहीं किया जा सकता। यह व्यक्तिगत अधिकार है यद्यपि यह किसी: संपत्ति विशेष पर अवधारित होता है। यदि भरण पोषण की राशि बकाया हो गई हो तो बकाया राशि क ! अन्तरण किया जा सकता है परन्तु भविष्य में प्राप्त होने वाली राशि का अन्तरण नहीं किया जा सकता। भरण पोषण की बकाया राशि के लिए प्राप्त डिकी का समानुदेशन द्वारा अन्तरण किया जा सकता है।


(1) मात्र नाद लाने का अधिकार [Section 6 (e)]:

वाद लाने का अधिकार अंन्तरित नहीं किया जा सकता जैसे मध्यवर्ती लाभ प्राप्त वाद तथा पूर्वाकयाधिकार के लिए वाद लाने के अधिकार को अन्तरित नहीं किया जा सकता।


1


1 परन्तु यदि वाद लाने का अधिकार किसी डिक्री में समाहित हो गया है तो डिक्री को समांनुदेशन द्वारा। अन्तरण किया जा सकता है। इस प्रकार प्रतिकर और मध्यवर्ती लाभ जो डिक्की में शामिल हो गये हो उनका अन्तरण किया जा सकता है।


यहां 'मात्र' शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कुछ अधिकार अनुयोज्य दावे' होते हैं। उनका अन्तरण किया। जा सकता है जैसे 100 रुपये का ऋण किसी को दिया गया है तो उसे प्राप्त करने के लिए वाद लोया जा सकता है। असंरक्षित ऋण अनुयोज्य दावा भी होता है। अत: उसका समानुदेश अन्तरण वैध होगा। आयोज्य दावों के अन्तरण के सम्बद्ध में संपत्ति अन्तरण अधिनियम धारा 30 से 137 में किये गये हैं।


1


(g) लोक पद [Section 6 (f)]:


लोक पद का अन्तरण नहीं किया जा सकता न ही लोक सेवक परन्तु इसके सम्बद्धः में एक अपवाद CPC की Section 60 में. दिया निष्पादन में किसी व्यक्ति के वेतन को भी जा सकती है:- कुर्क किया जा सकता है। के चेतत् का अनेतरुण किया जा सकता गया है इस धारा के अनुसार डिकी के! यह कुर्की निम्नलिखित नियमानुसार की।


यदि दो या दो से अधिक डिक्रियां हों तथा कुर्क करने योग्य भाग को लगातार 24 माह तक कुर्क कर । लिया गया तो ऐसे भाग को अगले 12 माह तक कुर्क नहीं किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त यदि एक ही : डिकी के निष्पादन में किसी व्यक्ति के वेतन को लेम्मृतार 24 माह तक कुर्क किया है तो इसके उपरांत कुर्क करने योग्य भाग को भी कुर्क नहीं किया जा सकता।


(h) पेन्शन [Section 6 (9)]:


वृतिकायें (Stipenda) जो सरकार के सैनिक, नौ सैनिक, वायु सैनिक तथा सिविल पेन्शन भोगियों को


! नहीं बल्कि पूर्व में दी गई सेवाओं के बदले दी जा (i) सर्जित हित के विरुद्ध अन्तरण/ [Section 6 (h)]:


i प्राप्त हो उसे अन्तरित नहीं किया जा सकता। राजनैतिक पेन्शनें भी इसमें शामिल है। पेंशन सेवाओं के बदले सकती है। उपहार पेन्शन नहीं होता है। 1


इस उपधारा के द्वारा तीच प्रतिबंध लगाये गये हैं।


1. जहां सूचित किये जा रहे हित पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़े। 2. जो I.C.A., 1872 की धारा 23 विधि विरुद्ध प्रतिफल के कारण अवैध है।


3. ऐसे व्यक्ति को अन्तरण न हीं किया जा सकता जिसे विधि द्वारा अयोग्य घोषित कर दिया गया हो


1


कुछ ऐसी वस्तुयें हैं जो प्रकृति के अनुसार हस्तान्तरणीय नहीं होती जैसे सामुदायिक वस्तुये (Res I Communes) हवा, पानी आदि जो संपूर्ण समाज के लिए है, स्वामित्वहीन संपत्ति (Res nullius) सि


वस्तुओं का कोई भी व्यक्ति स्वामी नहीं हो, गैर वाणिज्यक वस्तुयें- (Res extra commercium) उत वस्तुगें जो देवी को अर्पित कर दी गई है अन्तरणीय नहीं है। जो वस्तुयें अन्यथा अन्तरणीय होती है


गा प्रतिफल के अवैध होने के कारण अहस्तान्तरणीय हो जाती है (Section 23, ICA 18721 जैसे खेलने के लिए मकान को पट्टे पर देना।

उन व्यक्त्तियों के पक्ष में संपत्ति का अन्तरण नहीं किया जा सकता. जिन्हें अन्तरिती बनने से विधि द्वारा रोक दिया गया है। जैसे धारा 136 संपत्ति अन्तरण अधिनियमः 1882 के. अनुसार कोई भी न्यायाधीश, विधि | व्यवसायी, न्यायालय का अधिकारी कोई भी अनुयोज्य दावें को खरीद नहीं सक्ते। इस प्रकार डिक्की के निष्पादन में किसी संपत्ति को बेचा जा रहा हो तो न्यायालय के कर्मचारी या न्यायाधीश उस संपत्ति को नहीं खरीद सक्कते जिस व्यक्ति की डिकी के निष्पादन में किसी संपत्ति को बेचा जा रहा हो वह व्यक्ति श्री न्यायालय की | अनुमति के बिना संपत्ति नहीं खरीद सकता।


1(0) अहस्तान्तरणीय हित [Section 6 (i)]:


: संपत्ति में अनेक व्यक्तियों के हित सृजित किये जा सकते हैं कि उनका अन्त्ररण नहीं किया जा सकता है। जैसे प‌ट्टेदार पट्टा की गई संपत्ति में अपने हित का अन्तरेण सामान्यतः नहीं कर सकता, इस प्रकार एक | किसान जिसका लगान बकाया हो गया हो संपत्ति का अन्तरण नहीं किया जा सकता है, न्यायालय द्वारा नियुक्त । रिसीवर भी संपत्ति का अन्तरण नहीं कर सकता।


3. निष्कर्ष :


विधि द्वारा लोक हित, सामाजिक व्यवस्था तथा व्यवहारिक पक्ष को ध्योत्त में रखते हुवे अनेक प्रकार की संपत्तियों को अहस्तान्तरणीय बनाया है। उक्त वर्णित संपत्तियों के अतिरिक्त अन्य सभी चलं, अचल, मूर्त या अमूर्त सभी प्रकार की संपत्तियां निम्नलिखित प्रकार से अन्तरित की जा सकती है


1. परिदान द्वारा


2. पंजीकरण एवं परिदान द्वारा 3. समानुपेशन द्वारा (अनुमोन्य सने)














1. 'A' की एक पत्नी 'B' व एक पुत्री 'C' है। 'C' 1000/- का प्रतिफल से प्राप्त करके 'A' की संपत्ति में अपने हिस्से के अधिकार का निर्मोचन करती है। 'A' की मृत्यु हो जोती है तथा 'C' उसकी संपत्ति में से अपने हिस्से की मांग करती है। 'B' उसके दावे को प्रतिवाद करती है तथा निर्मोचन विलेख को प्रस्तुत करती है। क्या निर्मुक्ति वैध है? यदि नहीं, तो क्यों? (100 words, RJS 1976)


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2. सभी संपत्तियां अन्तरित की जा सकती हैं। क्या संपत्ति अन्तरण अधिनियम, 1832 में इस नियम के। कुछ अपवाद है? [UPPCS (J) 1984, 500 words, 50 words R.JS 2003]


3. संपत्ति को परिभाषित करें तथा उन संपत्तियों का वर्णन करें जो अन्तरणीय नहीं है(BJE-2000, 150 words)


4. संभाव्य उत्तराधिकार (Spes Successionis) पर सक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (100 words, RJS 1997) 5. संपत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 में वर्णित उन संपत्तिषों को वर्णन करें जो अन्तरित की जा सकती! है। (500 words).

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