Meaning & Definition of public International Law// सार्वजनिक अंतर्राष्ट्रीय कानून का अर्थ और परिभाषा...?

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 अंतर्राष्ट्रीय विधि को आरंभ में राष्ट्रों की विधि कहा जाता था, किंतु राष्ट्रों के आपसी संबंधों को विनियमित करने वाले नियमों को राष्ट्रों की विधि कहना भ्रामक लगता था क्योंकि इस शब्द से ऐसा आभास होता था कि इसमें कई राष्ट्रों की विधि का अध्ययन किया जाता है। इसी कारण सर्वप्रथम बेंथम ने सन 1789 में इस पद के स्थान पर अंतर्राष्ट्रीय विधि शब्द का प्रयोग किया और तभी से यह प्रचलित है। अधिकांश परंपरागत न्यायाधीशों ने अंतर्राष्ट्रीय विधि को एक ऐसी विधि के रूप में माना है, जो राष्ट्रों के पारस्परिक संबंधों को भी विनियमित करती है और इसी अर्थ में इस को परिभाषित किया गया है


ओपन हाइम के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय विधि नियमों का वह समूह है जो राज्यों के पारस्परिक संबंधों में उन नियमों पर आबद्धकर कर है। यह नियम प्राथमिक रूप से वे नियम है जो राज्यों के संबंध को शासित करते हैं, किंतु अकेले राज्य ही अंतर्राष्ट्रीय विधि के विषय नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन तथा कुछ हद तक व्यक्ति भी अंतर्राष्ट्रीय विधि द्वारा प्रदत्त अधिकारों तथा अधिरोपित कर्तव्यों के विषय हो सकते हैं।


स्टार्क के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय विधि, विधि का वह समूह है, जिनका अधिकांश भाग आचरण के उन सिद्धांतों तथा नियमों से बना है, जिन का अनुपालन करने के लिए राज्य अपने को बाध्य करते हैं। अतः वह अपने पारस्परिक संबंधों में इसका सामान्यता अनुपालन करते हैं तथा इसमें यह भी सम्मिलित है-


1- अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों या संगठनों की कार्यप्रणाली एवं उनके पारस्परिक संबंध तथा राज्यों एवं व्यक्तियों के संबंधों के वैधानिक नियम तथा,


2- कुछ वैधानिक नियम जो व्यक्तियों तथा गैर राज्य इकाइयों के अधिकारों तथा कर्तव्यों के संबंध में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से संबंधित हैं


विनोग्रेडाफ के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय विधि, राष्ट्रों के बीच सामान्यता प्रचलित मत एवं मनोभावों से बनती है।


स्वार्जनबर्जर के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय विधि उन विधिक नियमों का समूह है, जो प्रभुत्व संपन्न राज्यों तथा ऐसी अन्य इकाइयों पर लागू होती है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व प्राप्त है।


अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार (Basis of International law)


वर्तमान समय में अंतर्राष्ट्रीय विधि को सच्चे अर्थों में विधि माना गया है। राज्य अपने अभ्यास में इसके नियमों का पालन करते हैं। उठता है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार क्या है। अर्थात इस विधि के नियम किन बातों पर आधारित हैं। अंतर्राष्ट्रीय विधि के आधार के संबंध में दो प्रमुख


सिद्धांत प्रचलित हैं---


1-- प्रकृति वादी (Naturalist) सिद्धांत


2-सार्थकता वादी (Positivists) सि‌द्धांत


1- प्रकृति वादी सिद्धांत- 16 वी तथा 17वीं शताब्दी के अधिकतर विधि शास्त्री इस्मत के थे कि अंतर्राष्ट्रीय विधि प्रकृति विधि के नियमों पर आधारित है। वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय विधि प्रकृति विधि का एक भाग है। उनके अनुसार विधि की एक ऐसी प्रणाली विद्यमान है, जो ईश्वर या तर्क या नैतिकता से


उत्पन्न होती है। उनके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि इसी प्रणाली पर आधारित है। इस मत के प्रमुख समर्थक ग्रोशियस, पुफेन्डार्फ, वाट्टेल है। इन विधि शास्त्रीयों का लेखन धर्म परक विद्वानों, जैसे सैंट अगस्टाइन, विटोरिया तथा सुआरेज के कार्यों द्वारा अत्यधिक प्रभावित था। यह विधि बेत्ता तर्क देते हैं कि सभी विधियां ईश्वर से प्राप्त होती है तथा ईश्वर की सर्वोच्च विधि को दैवीय विधि मानते हैं। इसलिए प्राकृतिक विधि के अपेक्षा दैवीय विधि का लागू होना उचित है। प्राकृतिक विधि के नियम मूलभूत तथा अपरिवर्तनीय होते हैं, जो मानव समाज में शासकों तथा शासितों की इच्छा तथा सम्मति को आगे बढ़ाते हैं। इसलिए उनके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा सभी अन्य विधियां प्राकृतिक विधि पर आधारित हैं।


- सार्थकता वादी सिद्धांत अंतर्राष्ट्रीय विधि के आधार के संबंध में दूसरा 2 मत सार्थकता वादी सिद्धांत के विधिशास्त्रियों द्वारा दिया गया है। उनके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि राज्यों की पारस्परिक सम्मती पर आधारित है। जिन नियमों में राज्य की सहमति प्राप्त नहीं होती है, वह नियम उस राज्य पर बाध्यकारी नहीं होते हैं। विधि शास्त्री बाईकरश्योक का मत है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार राज्यों की सहमति है। राज्यों की सम्मति किसी भी नियम का पालन करने के लिए दो प्रकार से प्राप्त की जा सकती हैं, पहला, राज्यों की अभिव्यक्त सम्मति द्वारा तथा दूसरा, विवक्षित सम्मति द्वारा। अभिव्यक्त सम्मति संधि करके या सरकारों के ज्ञापित समागम द्वारा दी जाती है, जबकि विवक्षित सम्मति स्थापित प्रथा, अर्थात रूढ़ि का पालन कर दी जा सकती है।


 इस प्रकार रूडी तथा संधि, जिसके द्वारा राज्य की सहमति प्राप्त की जाती है, अंतर्राष्ट्रीय विधि के आधार हैं। जब तक कोई राज्य विशेष अंतर्राष्ट्रीय विधि के किसी विशिष्ट नियम को अपनी सम्मति नहीं देता, तब तक उस राज्य पर वह नियम बाध्यकारी नहीं माना जा सकता। मार्टेस तथा अंजिलोटी भी इस मत के समर्थक हैं अंतर्राष्ट्रीय विधि के आधार के संबंध में उपर्युक्त दोनों मतों में से कौन सा मत उचित है? इस प्रश्न के संबंध में यह कहा जा सकता है कि कोई भी मत अकेले अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय विधि दोनों ही सिद्धांतों से प्रभावित है। इसी कारण धार्मिक शाखा के विधिशास्त्रियों ने सार्थकता वादी तथा प्रकृति वादी शाखा के बीच के मार्ग को अपनाया है। धर्म वादी जैसे वाटेल विधि के दो वर्गों के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं-- एक प्रकृति वादी स्तर पर तथा दूसरा सार्थकता वादी स्तर पर।


इस प्रकार, उनके अनुसार अंतर्राष्ट्रीय विधि प्राकृतिक विधि तथा सम्मती से बनाई गई विधि, दोनों पर ही आधारित है। यह मत प्रकृति वादी तथा सार्थकता वादी विचारधारा के विधिशास्त्रियों द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की अपेक्षा उचित प्रतीत होता है। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि पूर्णतया ना तो प्राकृतिक विधि पर और ना ही राज्यों की सहमति पर आधारित है। अंतर्राष्ट्रीय विधि के नियमों में अधिकतर नियम राज्यों की सहमति के आधार पर आधारित हैं, जबकि उनमें से कुछ वास्तव में प्राकृतिक विधि से बने हैं।


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